रविवार, अक्तूबर 21, 2012

वही रहेगा : मैं नहीं


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अपने हाथों से
कंघी करता आया हूं
पता नहीं कब
कनपटियों से हो कर
न जाने कहां-कहां
उतर आई है सफेदी !

कितना तेजी से
बदल रहा हूं
जब कि मैं
समय नहीं हूं !

मेरे ही भीतर
शायद बैठा है कहीं
कुंडली मारे समय
जौ खींच रहा है
मुझे अपनी ओर
मैं उसकी ओर
जा रहा हूं
उधड़ता हुआ
वही रहेगा
मैं नहीं !

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