शुक्रवार, मार्च 29, 2013

समय हस रहा है


अब तो लगने लगा है
बहुत तेजी से 
भाग रहा है वक्त
मेरे पास
डायरियों को खंगालने का
निमिष भर नहीं वक्त
ऐसे में
डायरियों में पड़ी
मेरी हजारों कविताएं
कौन पढ़ेगा ।

बेटियों का फोन आया ;
पापा आप चिंता न करें
हम हैं ना
आप तो बस
समय पर दवा लेते रहें
अब मैं
दवा व बेटियों में
कविताओं के अंतर्सम्बंध
ढूंढ़ता हुआ चिंतित हूं
बेटियां अपने घरों में
रोटियां बनाएंगी
झाड़ू-पौंछा लगाएंगी
सास-ससुर की सेवा के बाद
अपनी अगली पीढ़ी में
रम जाएंगी
मेरी कविताओं से अधिक
रस होगा उनके गृहस्थ में ।

बेटियों के फोन के बाद
अब मुझे लगने लगा है
मेरे बाद
मेरी नहीं पढ़ी गई कविताएं
कभी नहीं पढ़ी जाएंगी
मेरी डायरियों के पास
स्वच्छंद घूम रही दीमक
मौन है
मगर बहुत आश्वस्त करती है
भविष्य के लिए
उन से भयभीत मैं
समय पर दवा ले रहा हूं
दवा छिड़क भी रहा हूं
दीमक फिर भी बढ़ रही है
मेरा क्षरण जारी है
समय हस रहा है ।

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