शुक्रवार, जून 21, 2013

प्रीत के गीत

चलो 
चल कर देखें
कौन कौन गा रहा है
प्रीत के गीत
या फिर हैं सभी
वासना में संलिप्त !

कितना अच्छा लगता है 
यह जान कर
अमराइयों में
खेत-खलिहानों में
बहिन-भाइयों में
डर में भी घर में
अभी तक
गाए जा रहे हैं
उन्मुक्त प्रीत के गीत !

संसद की मुंडेर
क्यों नहीं बैठती
मधुरकंठी कोयल
कांव-कांव
क्यों होती है भीतर
पहुंची नहीं शायद
रीत प्रीत की
अभी तक यहां ।

मांड मेँ आज भी
ढाल रही है प्रीत
मारु-कलाळी
दारू दाख्यां वाली
बड़ी हवेली
नूरी बेगम रुंधे गले

अपने घर 
क्यों रोती है
सुबक सुबक
आज भी बड़ी हवेली
प्रीत खरीदती है
बांटती नहीं शायद ।

देहरी के भीतर
पसरी है
चहुंदिश प्रीत असीम
जिसे रुखाले बैठी है अम्मा
विलायत जा बसे
बेटे-बहू-पोते
पर लुटाती रहती है
सांझ सवेरे
लौटता नहीं
एक भी कण प्रीत का
अम्मा के लिए
दूर दिसावर से
इसे अंजस बता
अम्मां टळकाती है आंसू
झरती है प्रीत आंगन मेँ !

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