आंक लिया गया है
अपने ही मानदंडों से
उनके द्वारा हमारा दम
निःर्थक समझ
रख छोड़ा है
हाशिये पर हमें ।
एक दिन आएगा
हम उठेंगे हाशिये से
अर्थाएंगे उन शब्दों को
जो बंद हैं आज
बड़ी मोटी ज़िल्दों में
फिर देखना टूटेगा
उन शब्दों का मौन
जो हैं हमारे ही अंशी
जो अभी हैं मौन !
तब जान जाएंगे
जमाने के शातिर लोग
न तो गुलाम है
न होता है मौन
शब्द तो ब्रह्म हौता है
हो कर उपस्थित
जो तोड़ता है मौन
फिर चाहे वह
हाशिये पर हो
या पृष्ठ के बीच
बड़ी ज़िल्द में क़ैद !
अपने ही मानदंडों से
उनके द्वारा हमारा दम
निःर्थक समझ
रख छोड़ा है
हाशिये पर हमें ।
एक दिन आएगा
हम उठेंगे हाशिये से
अर्थाएंगे उन शब्दों को
जो बंद हैं आज
बड़ी मोटी ज़िल्दों में
फिर देखना टूटेगा
उन शब्दों का मौन
जो हैं हमारे ही अंशी
जो अभी हैं मौन !
तब जान जाएंगे
जमाने के शातिर लोग
न तो गुलाम है
न होता है मौन
शब्द तो ब्रह्म हौता है
हो कर उपस्थित
जो तोड़ता है मौन
फिर चाहे वह
हाशिये पर हो
या पृष्ठ के बीच
बड़ी ज़िल्द में क़ैद !
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