गुरुवार, जून 20, 2013

* शब्द मत बनों *

रुको व्यंजनों
स्वरों का कर आलिंगन
शब्द मत बनों
बहुत कुछ ढोना पड़ेगा
व्यंजनाओं में तुम्हें
बहुत रोना पड़ेगा
जब जानोगे
तुम्हारे अर्थ
कितना बदल देते हैं
स्वार्थ में लोग
फिर थमाएंगे तुम्हें
नित नए विशेषण
कि देखो आज
कितना घिस गए हैं
शब्द चलते-चलते !

सुनो !
अब तक
शब्द बन चुके अक्षरो
हो सके तो
फिर से बन जाओ
अनहद नाद
जिसकी गूंज हो अनंत !

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