गुरुवार, जून 20, 2013

*पहनूंगी धानी चूनर*

कभी थी 
मैं भी जलजलाकार
लेता था सागर हिलोरें
मेरी देह पर
मेरे आंचल खेलते थे
करते पवन संग अठखेलियां
मेरे हरियल पूत प्यारे
अतीत में सिमटी
इन्हीं यादों में
खो कर सोई थी
अलसाई और चिपचिपी
उमस भरी
झूंपा भर छांव में
ताक लेता था
तार-तार सिणियों में से
तमतमाता सूरज
मैं रह जाती थी
बळबळती कसमसा कर
आज उसी मारग
तूं टपका आ कर
मेरी झळती देह पर
ओ प्रियतम मेघ !

तेरे नेह की
यह बूंद पा कर
टूटा है मेरा दुहाग
अब देखना
मैं भी करूंगी
सोलह श्रृंगार
पहनूंगी धानी चूनर
अब देखेगा जगत
मेरा लहलहाता नृत्य
मेरे संग नाचते
मेरे जाए
आसमान तक छा
होते रसाल !

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