'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, जून 02, 2013
हम फिर पानी हो गए
हम
पानी की तरह
बहते रहे
तुम
पत्थर की तरह
लुढ़कते रहे
हम
नदी की तरह
सिकुड़ते रहे
तुम
आकार पाते रहे
तुम्हें
मंदिरों में मिली जगह
हमें
बादल ले गए
तुम
देव हो कर भी
नहीं बरसे
हम
बरस कर
फिर पानी हो गए !
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