'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
गुरुवार, जून 06, 2013
कविता
हम ने जब कभी
दर्द की कविता लिखी
अकेले में गुनगुनाया
जग ने कहा
खुद को साला
कवि समझता है
कविता करना
तेरे बस की बात नहीं
ये डायरी उठा ले
जा कहीं छुप कर
आंसू बहा ले !
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