शुक्रवार, जून 21, 2013

*धरा दुहागिन*

न जाने किस ने
धरती को ओढ़ा दी
सफेद चादर
धरा लगने लगी
दुहागिन सी
इस मंजर को देख
छुप गए चांद-तारे
ले कर बादली रुमाल
किसी छोर सुबकने ।

आसमान रो रहा है
झुक कर धरती की ओर
गिर रहे है आंसू
बन ओस कण
भिगो रहे हैं
दामन धरा का
बिछ रही है संवेदना
धरा के जाए
घास-तरुवर पर
डाल-डाल पात-पात !

मौसम !
इस कदर तो
मत बदल
कि बदल जाए मंजर
इस कायनात का !

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