गुरुवार, जून 06, 2013

दो कविताएं

 ** गांव में **
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तीन साल पहले
समाचार-पत्र में
समाचार था ;
गांव में पानी की तंगी
दूर होगी
बनेगी पानी की टंकी ।

अभी दस दिन पहले
समाचार-पत्र में
फ़िर समाचार था ;
पानी की टंकी में रिसाव है
इसे गिराने में ही बचाव है ।

आज फ़िर समाचार है
पानी की टंकी गिरा दी गई
यूं जनता बचा ली गई ।

यह अलग बात है कि
गांव में
किसी ने
समाचार-पत्र आने के सिवाय
कोई घटना
कभी भी नहीं देखी
प्रेस-नोट सरकारी थे
इस लिए विश्वसनीय थे ।

** अकाल में गांव **
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गांव में
चार साल से अकाल था
फ़ेमिन था
फ़ेमिन में
काम के बदले
अनाज मिलता था
जिस्म के बदले
और जिस्म में
जान नहीं थी
बिरखा के लिए
अलूणे रविवार
निर्जला सोमवार के
व्रतों के कारण ।

गांव की दीवारों पर
नारा था-
पानी बचाओ !
बिजली बचाओ !!
सबको पढा़ओ !!!
यह अलग बात है कि
गांव में
न पानी था
न बिजली थी
न स्कूल था !

गांव में
न धंधा था
न खेती थी
न उद्योग था ।
प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत
शहर से सड़क ज़रूर आ गई थी
जो ले गई
शहर में
आदमी कम
सौदागर बहुत थे
यूं तो शहर में
"काम" बहुत था
और आदमी का
आदमी बने रहना
बहुत मुश्किल था
लौटना पडा़
उसी गांव में
जो अंधी सुरंग से
कभी कम न था !

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