गुरुवार, जून 06, 2013

दो हिन्दी कविताएं

 मेरी दो हिन्दी कविताएं 
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** गलियं **

कुछ गलियां
छोड़नी पड़ती हैं
कुछ आदमियों के कारण
और
कुछ गलियों में
जाना पड़ता है
कुछ आदमियों के कारण ।

गलियां
वहीं रहती हैं
वही रहती हैं
बदलते रहते हैं
आपसी सम्बन्ध
ठीक मौसम की तरह ।


रास्ता 
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चलें
ऐसे रास्तों पर
जहां चल सकें
जूते पहन कर ।
 
अधिक से अधिक
ऐसा रास्ता भी
हो सकता है ठीक
जहां चल सकें
जूती हाथ में थाम कर ।

भला कैसे हो सकता है
वह रास्ता
जहां चलना पडे़
सिर पर उठा कर
अपने ही जूते !

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