उस ने दिन कहा
दिन लगने लगा
उस ने रात कहा
रात उतरने लगी
उस ने कहा वसंत
वसंत छाने लगा
उस ने फूल कहा
फूल खिलने लगे
महक पसर गई
मेरे चारों ओर
सब कुछ होता रहा
उसी के कहने पर
हर दिन
हर पल !
अब वह
उदास और मौन है
अब वैसे नहीं हैं
रात और दिन
नहीं है वसंत में
वैसी धमक
गंधहीन हो गए
सारे फूल !
यूं ही नहीं हो गई
वह अर्धांगिनी
सच है
वही तो है प्रकृति
मुझे पुरुष करती हुई !
दिन लगने लगा
उस ने रात कहा
रात उतरने लगी
उस ने कहा वसंत
वसंत छाने लगा
उस ने फूल कहा
फूल खिलने लगे
महक पसर गई
मेरे चारों ओर
सब कुछ होता रहा
उसी के कहने पर
हर दिन
हर पल !
अब वह
उदास और मौन है
अब वैसे नहीं हैं
रात और दिन
नहीं है वसंत में
वैसी धमक
गंधहीन हो गए
सारे फूल !
यूं ही नहीं हो गई
वह अर्धांगिनी
सच है
वही तो है प्रकृति
मुझे पुरुष करती हुई !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें