'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 13, 2014
उड़ गई नींद
न देह थी
न थे पंख
फिर भी
न जाने कैसे
उड़ गई नींद..... !
आहिस्ता से आईं
लौट कर यादें
ठहरी आंखों में
आंखें मुंद गई
फिर भी
न जाने कैसे
उड़ गई नींद.....!
पहले कभी
उड़ती थी नींद
उनकी याद में
अपने आप
अब उड़ती है
जब होता है
उच्च रक्तचाप !
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