गुरुवार, अप्रैल 10, 2014

नन्दू का ख़त नत्थू के नाम

शहर गए नत्थू को
नन्दू ने खत लिखा ;
भाई !
तुम्हें तो मिल रहा होगा
दो वक्त खाना !

पगार में रुपये मिले तो
हरगिज मत लाना 
रुपये की कीमत
इधर बहुत गिर रही है
रुपयों में कुछ नहीं आता
बच्चों ने कल से
कुछ नहीं खाया है
माँ ने लिखवाया है
ला सको तो
दाल-भात लाना !

रुपये तो यहां भी
मिल ही जाते हैं
रोजगार की गारंटी है
मगर काम नहीं मिलता
काम मिलता है तो
पूरा दाम नहीं मिलता
टास्क का झंझट है
दिन पूरा हो जाता है
टास्क नहीं होती पूरी!

तुम वहां
मन लगा कर
काम करना
यहां की चिंता मत करना
बिजली का बिल
नहीं भरने के कारण
कनैक्सन कट गया है
अब बिजली का बिल
भरने का टंटा नहीं है
तीनों बच्चे
स्कूल छोड़ आए
फीस का झंझट भी
अब मिट गया है ।

मेरी नोकरी के लिए
अम्मा व्रत रखती है
बापू को चिंता में
भूख नहीं लगती
भाभी को
काम के बदले
अनाज मिल जाता है
उस से काम चल जाता है ।

दो पोस्ट कार्ड लाया था
एक लिख दिया है
एक फिर लिखूंगा
यहां की चिंता छोड़
अपना खयाल रखना !

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