कई दिनों से
बिन खुले पड़े हैं
घर के पूजा-घर में
वह भग्वद पुराण
गीता और भविष्य पुराण
उनके पास ही पड़ी है
मोटे काँच वाली ऐनक
जिन्हें लगा कर
बांचती थी माँ प्रति दिन ।
ऐनक के पीछे
अब नहीं हैं माँ की आँखें
ऐहसास मगर है अभी भी
माँ के वहीं होने का
अभी भी लगता है
घर के पूजा-घर से
आएगी बाहर आंगन में
घंटी बजाती
मन ही मन गुनगुनाती
हाथ में लिए
मिश्री व तुलसी का पत्ता
सब को बांटने ।
आरती के वक्त
आज भी
सांझ-सवेरे
हम सब के कदम
बढ़ जाते हैं उस और
जिधर से आती थी मां
घर के पूजा-पूजा घर से बाहर !
=
बिन खुले पड़े हैं
घर के पूजा-घर में
वह भग्वद पुराण
गीता और भविष्य पुराण
उनके पास ही पड़ी है
मोटे काँच वाली ऐनक
जिन्हें लगा कर
बांचती थी माँ प्रति दिन ।
ऐनक के पीछे
अब नहीं हैं माँ की आँखें
ऐहसास मगर है अभी भी
माँ के वहीं होने का
अभी भी लगता है
घर के पूजा-घर से
आएगी बाहर आंगन में
घंटी बजाती
मन ही मन गुनगुनाती
हाथ में लिए
मिश्री व तुलसी का पत्ता
सब को बांटने ।
आरती के वक्त
आज भी
सांझ-सवेरे
हम सब के कदम
बढ़ जाते हैं उस और
जिधर से आती थी मां
घर के पूजा-पूजा घर से बाहर !
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