'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 13, 2014
*बीज बंजारे*
बीज था
उड़ना बेचारा
उड़ा
गिरा
पत्थरों में
हारी नहीं
पल भर भी
हिम्मत उस ने
पत्थरों में मिली
थोड़ी सी नमी
अंकुराया
बढ़ा
खिला
फला
पका
आई हवा
चला गया
अंतत: उसके संग
अपने अंशियो को
ले कर साथ
पत्थर फिर
बंजर हो गए
बीज बंजारे
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