शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*मौन अंधेरा*

उजाला चला 
अंधेरा चीर
निकला आगे
आगे से आगे
दंभ पालता
भरता डग गम्भीर !

पीछे दौड़ 
अंधेरा आया
मंद गति
घनघोर छाया
बिम्ब समेटे
प्रतिबिम्ब लपेटे
भीतर अपने
निगल गया
उजाले की तकदीर ।

एक अकेली
धारे आंख
दसों दिशा मेँ
सूरज दौड़े
उसकी पीठ
बैठ अंधेरा
पल पल
उसका
दंभ तोड़े !

जगमग दीपक
करता टिम टिम
उसके नीचे
अमा का नाती
बैठा मौन अंधेरा
दीपक भोला
बात्ती तानेँ
कब जानेँ
रात अमा की लम्बी है
चांद छौड़ कर
भागा जिसको
रात वह अवलम्बी है ।

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