रविवार, अप्रैल 13, 2014

प्रीत

आपके किसी श्रम की
पगार नहीं होती प्रीत ।

तुम हंसे
मैं हंसा
दोनों मुस्कुराए
चल भी लिए
साथ-साथ
बहुत दूर तलक
यूं साथ होने का
होती नहीं आधार प्रीत !

मैले को उजला
अंतिम को पहला
कह मानली बातें
कर दिया समर्पण
तन मन सारा
कह दिया
तूं जीता मैं हारा
होती नहीं जीत-हार प्रीत !

मन के बदले मन
दिल के बदले दिल
दे डाला
हम ने तुम ने
तुम ने मारा
अपना मन
मैंने मारा
अपना मन
ले लो
दे दो
होता नहीं व्यपार प्रीत !

प्रीत बसती
भीतर कोठे
न दिल में जाती
न छूती दिमाग
लग जाती है
लगाई न जाती
आग प्रीत की
सुनी-सुनाई ना जाती
बज जाती बिना साज
ऐसी होती प्रीत राग
न जाने कौन रचे
कोई न सृजनहार प्रीत ।

मीठी लगती
प्रीत की बातें
कड़वी भी लग जाती
बातें सारी गुजर जाती
छन छन आती
बहुत सुहाती
आती जब लौट
अपनी मरजी
करती फिर संचार प्रीत !

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