रविवार, अप्रैल 13, 2014

*पुष्प और पत्तियां*

शाख पर साथ रहे
फूल और पत्तियां
लड़ते रहे साथ-साथ
मनचले झंझावातों से
फूल का रंग
चटख लाल
बहुत भाता
उसे अपलक निहार
मदमाती रहतीं पत्तियां
फूल भी मदमस्त सा
बीच पत्तियों के
करता मानो
रासलीला उपवन में
ना जाने कब यकबयक
पुष्प साथ छोड़ गया
या फिर कोई मनचला
शाख से तोड़ गया !

सौत थी हवा
आती नित उपवन में
छू-छू जाती पुष्प को
इधर-उधर डोलती
उन्मुक्त सी चहकती
आजकल महकती है
उसी ने किया होगा
वरण पुष्प का
सांय-सांय कसमसाती है !

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