शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*उसकी बातें*

वह चुप नहीं रहा
हम बोल नहीं सके
उसकी बातों पर
हसना मुश्किल था
तो रोना गैरजरूरी
इस लिए
घुटन अपने हिस्से
और बातें
उसके हिस्से रहीं
वह अपनी तकदीर पर
इतराता रहा
हम अपनी किस्मत पर
खीझते रहे उम्र भर !

आंखे ही थी
जो थीं आमने-सामने
हमारी झपकती नहीं थी
उनकी उठती नहीं थी
आंखों की भाषा से
वह खाता था खौफ
इस लिए वह
हर मुलाकात में
आंखे निकालता था
हमारी आंखें
निकाल लेने की मुद्रा में !

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