शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*हाल सुना भाई*

आ बैठ सुना अपना हाल भाई ।
कैसे पिचके हैं ये गाल भाई ।।
मजूरी से आता केवल आटा ।
बता कहां से लाया दाल भाई ।
महंगाई के पड़ते चाबुक नित ।
बची कैसे तुम्हारी खाल भाई ।।
दिन भर खटता तूं और बढ़ते वे ।
कौन बुने है ऐसा जाल भाई ।।
वोट हो तेरा और राज उनका ।
यह कैसा जाल-जंजाल भाई ।।
दिन काटना  कठिन है कितना ।
कैसे काटेगा तूं साल भाई ।।

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