रविवार, अप्रैल 13, 2014

बहुत दूर से आया हूं

वक्त गया है
या भाग गया 
जाते वक्त
वक्त ने
वक्त दिया या नहीं
कह तो नहीं सकता
वक्त के निशान मगर
आंखों में
झिलमिलाते जरूर हैं ।

बहुत दूर से
आया हूं मैं चल कर
जितना भी अब हूं
उस से भी पहले था
मैं कहीं और
वक्त तो
उस से भी पहले था
आज भी है
मैं ही भागा हूं।

जहां हूं
वहां आ कर
छुपाई है मैंने
अपनी पहचान
कोई तो बताए
मैं कहां से आया हूं
अब हूं तो
पहले भी
जरूर रहा होऊंगा
वक्त के साथ-साथ
क्यॊ कि मुझे में
आज भी नहीं है साहस
वक्त से


आगे-पीछे होने का ।

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