रविवार, अप्रैल 13, 2014

**आओ खत लिखेँ**

मोबाइल और मेल से
समचारोँ का
नकद भुगतान रोक कर
आओ 
आज फिर से खत लिखेँ
खत मेँ 
सारी गत लिखेँ
खुशियां लिखेँ
गम लिखेँ 
शिकवे लिखेँ
शिकायत लिखेँ
फिर करेँ इंतजार
खत के पहुंचने का
कुछ वक्त मगर
जरूर लगेगा
आओ


तब तक सोचेँ
शायद तब तक
खुशियां फैल जाएं
दसोँ दिशाओँ मेँ
गम दम तोड़ जाएं
हमारे शिकवे शिकायत
हमारी ही
नासमझी घोषित हो जाए !

आओ उड़ाएं
अपनी अपनी छत से
एक एक कबूत्तर
जो ले कर जाए
अपनी चोँच मेँ
प्रीत की पाती
जिसे बांटे धरा पर
कुछ ले जाएं
बादलोँ के पार
जहां हो सकते हैँ
हमारे अंशी
मानव वंशी !

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