भरा-भरा हो
हरा-भरा हो
घर में जाए
घर में आए
जिन से बंधी हो
प्रीत की डोर
सब हों घर में
तब होता है
घर जैसा घर !
घर में हो
आटे से भरा कनस्तर
पर्याप्त मसाले
हरी शाक-सब्जियां
छौंक के लिए
तेल -घी
दो वक्त के लिए
चाय-चीनी-दूध
दिन-रात हो बिजली
दवा लायक पैसा
इन सब के लिए हो
दो हाथों को काम
फिर लगता है
घर जैसा घर
वरना भाई
छत से ढकी
इन दीवारों के बीच
बहुत लगता है डर !
घर जैसे घर मे ही
होता है प्यार
प्यार होता है तभी
मनता त्यौहार
चाहे फिर तीज हो
होली-दिवाली
ईद -मुहर्रम
या हो लोहडी-वैसाखी !
हरा-भरा हो
घर में जाए
घर में आए
जिन से बंधी हो
प्रीत की डोर
सब हों घर में
तब होता है
घर जैसा घर !
घर में हो
आटे से भरा कनस्तर
पर्याप्त मसाले
हरी शाक-सब्जियां
छौंक के लिए
तेल -घी
दो वक्त के लिए
चाय-चीनी-दूध
दिन-रात हो बिजली
दवा लायक पैसा
इन सब के लिए हो
दो हाथों को काम
फिर लगता है
घर जैसा घर
वरना भाई
छत से ढकी
इन दीवारों के बीच
बहुत लगता है डर !
घर जैसे घर मे ही
होता है प्यार
प्यार होता है तभी
मनता त्यौहार
चाहे फिर तीज हो
होली-दिवाली
ईद -मुहर्रम
या हो लोहडी-वैसाखी !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें