शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*आवारा नींद*

देह की विश्रांति हेतु
सब कुछ भूल कर
स्वतः चले जाना
अवचेतन में 
शायद होता होगा
नींद का आना
रात भर बिस्तर में 
पडे रहना तो
हरगिज नहीं हो सकता
आराम से सोना
देह के संदेह पर
तंद्रा का टूटना
किसी की स्मृति का
सदेह सा उपस्थित होना
घोषित कर ही देता है
सजग नींद का
असफल उपक्रम !

स्पष्ट है
नींद लाई नहीं जाती
वह तो आती है
आ कर छा जाती है
हमारे चेतन पर !

भला कैसे आएगी
आज आवारा नींद
जो भटक रही है
देह से दूर
पलक झपकते ही
तकिए की जगह /जब
महसूस होता है
तुम्हारा मुडा हुआ हाथ !

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