शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*स्मृतियां:पांच सवाल*

1.
दिन भर 
बंधी रह कर
रात के सन्नाटे में
पा कर एकान्त
क्यों खुल जाती है
अपने आप
स्मृतियों की गठरी ?
2.
दिन भर
घर भर में
मिटाती है भूख
बेल कर रोटियां
कई-कई पेट की
रात की तनहाई में
देह से बडी
क्यों हो जाती है
नेह की भूख ?
3.
दिन भर
ताकती जगत को
देखती शंका से
गहराती रात में
खोया तलाशती
अपना सपना
क्यो झरने लगती हैं
मौन आंखें ?


4.
दिन भर
हर पल
खाली बर्तन सी
खनकती आंखें
रात के अंतिम पहर में
क्यों हो जाती है
यक-ब-यक लबालब
कहां से आता है
इतना पानी ?
5.
दिन भर
भीड़-भाड़ में
दौडता बदन
तोड़ता दिन
सांझ ढले
हो जाता है निढाल
क्यों नहीं तोड़ पाता
ढलती रात
अक्सर वही
तोतड़ती है उसे !

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