आज मन उदास है
क्यों है उदास
यह तो मन ही जाने
जो बैठा है
फन फैला कर
बुद्धि पर कुंडली मारे !
कौन है दूर
कौन है पास
जिस के लिए है
मन है आज उदास !
किस को सोचूं मैं
कौन सोचता है मुझे
या कि कौन सोच गया
कभी किसी पल
जिसकी छवि
उकेर लेता है मन
एकांत में गुपचुप
फिर दौड़ता है
स्मृतियों के मरुस्थल में
जहां नहीं है कुछ भी
मृगतृष्णा के अतिरिक्त !
आ , लौट आ मन !
आ , मैं सुलाऊं तुझे
विस्मृतियों की
थपकियां दे कर
अपनी बुद्धि के आंगन !
क्यों है उदास
यह तो मन ही जाने
जो बैठा है
फन फैला कर
बुद्धि पर कुंडली मारे !
कौन है दूर
कौन है पास
जिस के लिए है
मन है आज उदास !
किस को सोचूं मैं
कौन सोचता है मुझे
या कि कौन सोच गया
कभी किसी पल
जिसकी छवि
उकेर लेता है मन
एकांत में गुपचुप
फिर दौड़ता है
स्मृतियों के मरुस्थल में
जहां नहीं है कुछ भी
मृगतृष्णा के अतिरिक्त !
आ , लौट आ मन !
आ , मैं सुलाऊं तुझे
विस्मृतियों की
थपकियां दे कर
अपनी बुद्धि के आंगन !
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