लोग आते रहे
बैठ-बैठ जाते रहे
संवेदनाएं भी व्यक्त कीं
लाख दिलासों के बाद भी
आंसू मगर थमे नहीं
शून्य में ताकती
मौन आंखों से झांकते
अबोलो सवालों को
कौन देता है जवाब-
क्यां शब्दों से थम जाते हैं
किसी के आंसू
क्या व्यक्त हो जाती हैं
सारी की सारी संवेदनाएं
शब्द कोश भर शब्दों से
क्या है कोई ऐसी भाषा
जो पढ़ ले किसी का
दिल और मन ।
कोई भी भाषा
किसी भी श्ब्द कोश के शब्द
शायद पर्याप्त नहीं है
किसी का अंतस
पूरा बांचने के लिए ।
बैठ-बैठ जाते रहे
संवेदनाएं भी व्यक्त कीं
लाख दिलासों के बाद भी
आंसू मगर थमे नहीं
शून्य में ताकती
मौन आंखों से झांकते
अबोलो सवालों को
कौन देता है जवाब-
क्यां शब्दों से थम जाते हैं
किसी के आंसू
क्या व्यक्त हो जाती हैं
सारी की सारी संवेदनाएं
शब्द कोश भर शब्दों से
क्या है कोई ऐसी भाषा
जो पढ़ ले किसी का
दिल और मन ।
कोई भी भाषा
किसी भी श्ब्द कोश के शब्द
शायद पर्याप्त नहीं है
किसी का अंतस
पूरा बांचने के लिए ।
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