बुधवार, मई 25, 2011

OO मेरी पंजाबी कविताएं : पंजाब चित्तर O

पंजाब में उस आतंक के दौर को हम सब ने जीया-सहा जो समूचे पंजाब के जनमानस की चाहत नहीं था ! आतंक के उस दंश को पंजाब के जन मानस ने बहुत करीब से झेला ! आतंक के उस गुब्बर ने जो चिन्ह वहां छोडे़ उसके अक्स आज भी भयभीत करते हैं ! पंजाब के लोगों का दर्द किस कदर पीढियों में समाने लगा ! मैंने उस दर्द की तस्वीर अपने शब्दों में उस वक्त उतारी जो पंजाबी कवि फ़ूल सिंह मानव के सम्पादन में शिक्षा विभाग राजस्थान के संकलन " अंतर्भारती " [1993 ]में " पंजाब चित्तर " नाम से छपे एवम बहुत चर्चित हुए ! आपकी प्रतिष्ठा में प्रस्तुत है वही- " पंजाब चित्तर ! " राजस्थानी व हिन्दी अनुवाद सहित-

[ 1 ]


ਇਕ ਵਿਧਵਾ
ਦੂਜੀ ਵਿਧਵਾ ਨੂਂ
ਪੁਛਦੀ ਹੈ
ਤੀਜੀ ਵਿਧਵਾ ਦੇ ਹਾਲ
ਜੇਡੀ਼ ਜਾਣਦੀ ਹੈ
ਸਾਰਿਯਾਂ ਵਿਧਵਾਵਾਂ ਦੇ ਹਾਲ
ਤੇ ਦਸਦੀ ਹੈ
ਕਿ ਗਵਾਂਡ ਆਲ਼ੇ ਪਿਂਡ ਵਿੱਚ
ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਨੇਰੇ ਤੇ
ਅਜਕਲ
ਨੀਂ ਸੁੱਕਦਿਯਾਂ ਪੱਗਾਂ !

ਇਕ ਹੋਰ ਵਿਧਵਾ
ਜੇਡੀ਼ ਆਈ ਹੈ
ਦੂਜੇ ਜ਼ਿਲੇ ਤੋਂ / ਦਸਦੀ ਹੈ
ਘੋਡੀ਼ ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਸਜ਼ਦੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਨਿਕਲ ਦੀ ਜੰਨ
ਕਿਸੇ ਪਿਂਡ ਤੋਂ
ਕਿਸੇ ਪਿਂਦ ਲਈ!


ਗੱਲ ਦੇ ਬਾਦ
ਕਿਤੇ ਕੋਈ ਗੱਲ
ਬਾਕੀ ਨੀਂ ਰਹਿਂਦੀ
ਤੇ ਫ਼ੇਰ
ਬਲਾਂ
ਪੁੱਜ ਕੇ ਰੋਂਦਿਯਾਂ ਹੰਨ
ਮਿਲ ਬਹਿ ਕੇ
ਸਾਰਿਯਾਂ ਵਿਧਵਾਵਾਂ
ਗਿਧੇ ਦੀ ਤਰ੍ਜ਼ ਤੇ
ਪਿੱਟਦਿਯਾਂ ਹਨ ਛਾਤੀ !


[ 2 ]


ਪੁਛਦੀ ਹੈ ਅਂਬੋ ਤੋਂ
ਸੱਤ ਸਾਲ ਦੀ ਗੁਰਮੀਤ
ਵੱਡੇ ਹਨੇਰੇ ਵੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਆਵਂਦਾ
ਕੋਈ ਬਂਦਾ ਅਪਣੇ ਘਰ ?

ਦੱਸ ਅਂਬੋ
ਮੇਰੀ ਬੇਬੇ ਦਾ ਬ੍ਯਾਹ
ਕਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੋਯਾ ਸੀ ?
ਕਦੇ ਆ ਕੇ
ਮੇਰਾ ਸਿਰ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਪਲੂਸਦਾ ਬਾਪੂ
ਤੇ ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਲ੍ਯਾ ਕੇ ਦੇਂਦਾ
ਮਂਡੀ ਤੋਂ ਸ੍ਲੇਟ ਬਰਤਾ ?
ਕਿੱਥੇ ਹੈ ਬਾਬਾ
ਆਵਂਦਾ ਕ੍ਯੋਂ ਨੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੇ ਕਰਦਾ ਕੁੱਤਕੁਤਾਡਿਯਾਂ
ਮੇਰੇ ਪਿਂਦੇ ਤੇ ?


ਪਰ
ਸੱਤਰ ਸਾਲ ਦੀ ਕਰਤਾਰੋ
ਹੌਂਕਾ ਭਰ ਕੇ ਰਹ ਜਾਂਦੀ ਹੈ
ਅੰਨੀ ਅਖਾਂ ਤੇ ਖਿਚ ਕੇ ਚੁੰਨੀ
ਕੈਹਂਦੀ ਹੈ
ਸੋਂ ਜਾ ਪੁੱਤ
ਸਾਰੇ ਸੌਂ ਪਏ !


[  3 ]


ਦੱਸ ਤਾਈ
ਕਦੋਂ ਹੋਵੇਗੀ ਮੇਰੀ ਬੇਬੇ ਦੀ ਮਂਗਣੀ ?
ਪਹਿਲਾਂ ਦੱਸ ਸਚੀਂ
ਕਦੌਂ ਆਵਣਗੇ
ਤਾਯਾ ਜੀ ਘਰ ?


ਪਿਂਡ ਵਿਚ
ਕ੍ਯੋ ਨੀਂ ਬੋਲ ਦੇ ਆਪਸ ਵਿਚ ਸਾਰੇ
ਇਕ ਦੂਜੇ ਗਵਾਂਡੀ ਨਾਲ ?
ਵਾਹੇ ਗੁਰੂ ਦੇ ਘਰ ਵਿਚ ਵੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਲਗਦਾ ਹੈ
ਧਮਾਕ੍ਯਾਂ ਦਾ ਡਰ ?


ਬੋਲੇ ਸੋ ਨਿਹਾਲ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਹੋਂਦਾ ਅਜਕਲ ?

==============

राजस्थानी अनुवाद
==============

[ १ ]

ऐक विधवा
दूजी विधवा सूं
पूछै
तीजी विधवा रा हाल
जकी जाणै
सगळी विधवावां रा हाल
अर बतावै
कै पाडो़स आळै गांव में
किणी भी मंडेरी माथै
अजकाळै
नीं सुक्कै पागड़्यां !


ऐक और विधवा
जकी आई है
दूजै ज़िलै सूं / बतावै
घोडी़ क्यूं नीं सजै
क्यूं नीं निकलै बरात
किणीं गांव सूं
किणीं गांव सारू !


बातां रै बाद
कठै ई कोई बात
बाकी नीं रै’वै
अर पछै
बेजां
बोकाडा़ फ़ाड़ बोकै
भेळी बैठ
सगळी विधवावां
गिड़दै री तरज़ माथै
कूटै छाती !


[ २ ]


पूछै दादी सूं
सात साल री गुरमीत
दिन छिप्यां पछै भी
क्यूं नी आवै
कोई माणस आपणै घरां ?
बता दादी
म्हारी मा रो ब्यांव
किण रै साथै होयो ?
कदै ई आय’र
म्हारै सिर माथै
हाथ क्यूं नीं फ़ेरै बापू सा ?
अर क्यूं नीं ल्या’र देवै
बज़ार सूं स्लेट-बरतो ?


कठै है दादो सा
आवै क्यूं नीं
क्यूं नीं करै गिलगिलिया
म्हारै डी’ल माथै !


पण
सत्तर साल री करतारो
सिसकारो न्हाख’र ढब जावै
आंधी आंख्यां माथै खींच’र चुन्नी
बोलै
सोज्या बेटा
सगळा सोग्या !


[ ३ ]

बता बडिया
कद होसी म्हारी मा री सगाई ?
पै’ली बता सांची
कद आसी
बाबो जी घरां ?


गांव में
क्यूं नीं बोलै आपस में सगळा
ऐक-दूजै पाडौ़सी साथै ?


वाहे गुरू रै घर में भी
क्यूं लागै
धमीडां रो डर ?
बोलै सो निहाल
क्यूं नीं होवै अजकाळै ?

=================
हिन्दी अनुवाद
=================

[ १ ]


एक विधवा
दूसरी विधवा से
पूछती है
तीसरी विधवा के हाल
जो जानती है
सब विधवाओं के हाल
और बताती है
कि पडो़स के गांव में
किसी भी मुंडेर पर
आजकल
नहीं सूखतीं पगडि़यां !


एक और विधवा
जो आई है
दूसरे ज़िले से /बताती है
घोडी़ क्यों नहीं सज़ती
क्यों नहीं निकलती बारात
किसी गांव से
किसी गांव के लिए !

बातों के बाद
कहीं कोई बात
शेष नहीं रहती
और फ़िर
ऊंची आवाज में
जार जार रोती हैं
गिद्धे की तर्ज़ पर
पीटती हैं छातियां !


[ २ ]


पूछती है दादी से
सात साल की गुरमीत
सांझ ढले भी
क्यों नहीं आता
कोई बंदा अपने घर ?


बता दादी
मेरी मां का विवाह
किस के संग हुआ था ?
कभी आ कर पिताजी
क्यों नहीं करते प्यार
और क्यों नहीं ला कर देते
बाज़ार से स्लेट-बरता ?


कहां है दादाजी
आते क्यॊं नहीं
क्यॊ नहीं करते गिलगिली
मेरे शरीर पर ?


परन्तु
सत्तर साल की करतारो
सिसक कर रह जाती है
अंधी आंखों पर खींच कर चुन्नी
कहती है
सो जाओ बेटा
सब सो गए हैं !


[ ३ ]


बता बडी़ मां
कब होगी मेरी मां की सगाई ?
पहले बता सच
कब आएंगे ताऊ जी घर

गांव में
क्यों नहीं बोलते सभी
एक दूसरे पडो़सी के साथ ?


वाहे गुरू के घर में भी
क्यों लगता है
धमाकों का डर ?
बोले सो निहाल
क्यों नहीं होता आजकल ?






शनिवार, मई 07, 2011

OO सड़क कभी नहीं बोलती OO

 

देहरी को लांघ
सड़क से सरोकार
यानी
असीम से साक्षात्कार ।

अंतहीन आशाएं
उगेरती सड़क
उकेरती अभिलाषाएं
पसर पसर आती हैँ
भटक भटक जाता है जीवन
कभी कभी
लौट भी नहीँ पाता
मुकम्मल सफ़र के बाद भी
कोई अधीर पथिक ।

सड़क चलती रहती है
आशाओँ
अभिलाषाओँ
आकांक्षाओँ को समेटती ।

बीच अधर मेँ
भले ही रुक जाए सफ़र
देह का
जीवन का सफ़र
नहीँ रुकता कभी भी ।

छूटती आशाएं
किसी और कांधे पर
आरूढ़ हो
फिर फिर से
निकलतीँ हैँ सफ़र पर
यूं कभी नहीँ होती खत्म
प्रतीक्षा किसी भी देहरी की
जो झांकती है शून्य मेँ
उसके मुंह के सामने
पसरी सड़क की देह पर
कि आए वह लौट कर
जो निकला है सफ़र पर
दे दस्तक सांझ ढले
लेकिन
सड़क नहीँ बोलती
कभी भी नहीँ बोलती ।

शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011

OO पाटा पंचोळ OO












-सै'र मेँ पाटो अर बाअंडै फांटो !
-गज़ब सा !
-सै'र मेँ फांटो अर बाअंडै पाटो !
-नीँ चलै सा ?
-थांनै कुण कै'ई ?
-दिन में घोड़ी ब्यागी होवैला !
-चलो,छोडो !
-बद्री रै सासरै सूं परसाद कित्तो आयो ?
-ठाह नीँ !
-बार गांव रो बळै !
-थारा दादो जी ?
-हरीसरण होग्या !
-कद ?
-काल !
-फेर तो पांचूं घी मेँ !
-काईँ माल बणसी ?
-ठाह नी !
-समाज मेँ बैठै तो ठाह पड़ै !
-लाई ओ काईँ जाणै समाजसार !
-बड्डो भाई करै सो ! अफसर है !
-धूड़ है अफसराई मेँ !
-बीँ नै ठाह ई नीँ !
-काईँ ?
-बड्डी मिलनी कित्तै री होवै अर छोटी कित्तै री !
-बीं री पटराणी भी अफसर है !
-धूड़ है !
-कियां ?
-लक्खणबारी है ओ !
-कियां ?
-मुंडा उघाड़ी फिरै !
-टाबर कित्ता है ?
-भीँतां रै होया काईँ ?
-कियां ?
-ना भजन , ना आरती !
-भजन आरती सूं कदै ई टाबर होया ?
-होवै  ओ !
-कियां ?
-म्हारै ओ फरसियो बड़्डै गणेश जी री
121 फेरी बाद होयो !
-अच्छा !
-हां ! अर पूनरा सर मेँ सवामणी भी करी !
-अच्छा !
-हां , अर खण लियो !
-क्यां रो ?
-चाय रो !
-तो ?
-तो क्या , दो साल फेर चाय रै हाथ नीँ लागायो !
-तो ?
-बस कोफी पी । चार बगत !
-ऐ काईँ जाणै आं बातां नै !
-जावै तो है कठै ई !
-जावै बडेरां नै धोबा देवण !
-पी.बी.एम. मेँ जावै !
-तो मंगळ जी खेला लियो पोत्तो !
-तो ?
-रुणीचै पैदल भेज !
-फेर ?
-नोवैँ मईनै बाबो गोदी भर देसी !
-लै अब जरदो लगा !
-अब ई ल्यो !
-पीळकी पत्ती है नीँ !
-हां है !
-जीवंतो रै !
-छोरो तो स्याणो है !
-क्यूं कोनीँ होवै स्याणो,म्हारै काकै रो पोतो है !
-ईँ रो बाप काळियो अर पीळियो दोनूं राखतो !
-अच्छा ?
-और काईँ !
-नित री अधसेर भांग घोटतो ! पाव चेपतो थर बड़ै बजार मेँ !
-अब ?
-अब तो हरीसरण होग्यो !
-कियां ?
-माथै री नस फाटगी !
-आदमी चलवोँ हो !
-कदै ई काम रै हाथ नी लगायो पण नित रा अलवां माल ठोकतो !
-पण बैठतो समाज मेँ !
-मरणै-परणै-न्यारै-गोठ कदै ई नीँ चूकतो !
-समाज री काण राखणियां कदैई चूक्या करै है काईँ ?
-लै ,थोड़ो आडो होज्या पाटै माथै, रात री तीन बजै !
-घरै कोनीँ जाओ ?
-घरै थारी काकी है नी डोफ्पा !

गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

**** आज़ादी ****

सबद गळगळा सूं एक कविता


बां डूंडी पीट्टी

देस आज़ाद हुग्यो !
देस आज़ाद हुग्यो !!
अर
सगळा
नाचण कूदण
अर खावण पीवण लागगिया ।


मस्ती मांय
बां रै हाथ सूं छुट्योड़ी
दारु रा दो ढक्कण
सूंडी ढाळ'र
म्हे भी उछ्ळ्या
देस आज़ाद हुग्यो !


म्हे भी
बां मांय मिलगिया
बोदा मांचा बाळ दिया
पूर फाड़ लिया
अनै ढोह लिँधी
बोदकी छानड़ी !


ज्यूं ई दिन छिप्यो
अंधारो बध्यो
पेट री भूख
मद सूं बलवान होयगी
म्हे कै'यो
मालकां ! भूख लागगी
रोटी मंगाओ !


आ सुण'र
बां री डावी आंख फड़की
अनै
जबान कड़की-
आज काम कद करियो ?
काम रै बदळै
मिलै अनाज
आज़ादी रै उच्छब बदळै नीँ !
आज़ादी दाणां खातर नीँ
आज़ादी राणां खातर है
थे तो
काम करो
वोट घालण री
त्यारी करो
थारा म्हे
थांरै वोटां रै ताण
थां खातर राज करस्यां
जी करसी जकै रै आंगळी
अनै
जी करसी जकै रै खाज करस्यां !


थे आज़ाद हो
अब घरां जाओ
उच्छब मनाओ
घी रा दीया जगाओ
देस आज़ाद हुग्यो !
हां-हां
देस आज़ाद हुग्यो ! !


म्हे
टूट्योड़ी टापरी
खिँड्योड़ी गुवाड़ी मांय
चेता चूक हुयोड़ा सा आया
टाबर उछळ परा
रोटी मांगी तो
म्हारी लारली चेतना पाछी जागी
म्हैँ कूदण लाग्यो
पीँपो बजावण लाग्यो
हां-हां ! नाचो-गाओ !
देस आज़ाद हुग्यो
खुसियां मनाओ !


म्हनै यूं नाचतै नै देख
घर रा सगळा
नाचण लाग्या
नाचता रै'या !
नाचता रै'या !!
नाचता रै'या !!!
हाल नाच रै'या है
देस आज़ाद हुग्यो !
देस आज़ाद हुग्यो ! !
ओ मर्सियो बांच रै'या है !

[ कविता संग्रै "सबदगळगळा" 1984 सूं ]

.

बुधवार, मार्च 30, 2011

हिन्दी कविता :नत्थू के पांच सवाल

** नत्थू के पांच सवाल **


.
[1]

न इश्क है
न बीमारी
न चिंता है
न खुमारी
फिर क्योँ उड़ गई
रातोँ की नीँद हमारी ?


सवाल तो
और भी हैँ
फिलहाल
इसी का चाहिए
हमेँ जवाब ;
पेट भरने के बाद भी
क्योँ चाहिए तुम्हेँ
दुनियां की दौलत सारी ?


[2]


हाड़ तोड़ मेहनत कर
घुटनोँ तलक पसीना बहा
पेट नहीँ भरता
मेरे नत्थू का
जब से उगी है मूंछ
मुठ्ठियां तानता है
अब खाता नहीँ
शपथ संविधान की !
क्योँ कहता है वह
एक संविधान से पहले
दो जून धान जरूरी है ?


[3]

क्या जवाब दूं
मेरे नत्थू को
जो बार-बार पूछता है
धाए-अघाए लोग

संसद मेँ
और
जन्म के भूखे
दड़बोँ मेँ
क्योँ रहते हैँ ?


[4]


जब जब भी
चूल्हे से ज्यादा
दिल जलता है
मुझ से पूछता है
मेरा नत्थू ;
जवाब दो
क्योँ पटक दी गई
हमारे ऊपर
जन्म से पहले
गरीबी की रेखा
क्योँ नहीँ उकेरी गई
अमीरी की रेखा ?


[5]


भूखे लोग
जब जब भी
संगठित हो
करते हैँ अनशन
उन पर
क्योँ बरसाई जाती हैँ
खुले हाथ लाठियां
क्योँ नहीँ बरसाई जाती
दो जून रोटियां ?


मेरे पास
कोई जवाब नहीँ
नत्थू के इन सवालोँ का
तुम ढूंढ़ लो
वह दड़बे से निकल गया है
मुठ्ठियां तान कर !










.

सोमवार, मार्च 28, 2011

एक ताज़ा हिन्दी कविता



.
*** मन करता है ***



हम चाहे
कुछ करेँ या न करेँ
मन हमारा
कुछ न कुछ
ज़रूर करता रहता है !

हमनेँ वोट किया
बदले व्यवस्था
नहीँ बदली !
मन ने
बो दिए बीज
न हो सकने वाली
अदृश्य क्रांति के !


मन करता रहा
भूखे को भोजन
नंगे को कपड़ा
घरहीन को घर
मिल ही जाए
संसद ने नहीँ सुना
भोजन अवकाश के बाद
वह स्थगित हो गई
अनिश्चितकाल के लिए ।


मन बोला
पेट क्योँ है
हर किसी के
जब भोजन नहीँ है
सब के लिए ।
लोग नंगे क्योँ है
जबकि सरकारेँ
कपड़े के लिए नहीँ
बुनती है ताने-बाने
अपने बने रहने के लिए ।


मन ने पूछा
देश मेँ
बहुत से हैँ
चिड़िया घर
अज़ायब घर
डाक घर
मुर्दा घर
फिर क्योँ हैँ
बहुत से लोग बेघर
इतने बरसोँ से !


नहीं मिलता
कहीँ से भी
किसी भी सवाल का
कोई ज़वाब
फिर क्योँ है
मेरे पास
उत्तरविहीन
इतने सवाल ?

मन पूछता रहता है
सब के हाथ
लड़ने के लिए नहीँ
मिलाने के लिए भी है
फिर क्यों
कुछ हाथ निकलते है
रोटी और लड़ाई के लिए ।


मन भरमाता है
हाथोँ की अंगुलियां
जब हैँ
मुठ्ठियां बंनने
और तनने के लिए
तो फिर क्योँ
पसर जाते हैँ हाथ
उठ जाती है अंगुलियां
एक दूसरे की ओर !


मन करता है
मन न करे कुछ
तन करे
ताकि चल सके
तन कर आदम जाये !













अस्सी... नब्बै.... अर होवैला पूरा सो डांखळा


[1]
लूंठा कवि हा चूणदान चोटिया ।
सुणाया करता दूहा फ़गत खोटिया ॥
पैली तो खूब गाजता
पछै धोती चक भाजता
सरोता जद चक लेता सोटियो ॥
[2]
ठुमक’र ऊंदरै कन्नै आ कैवण लागी ऊंदरी ।
देखो जी म्हूं लागूं हूं नी आज विश्व सुंदरी ॥
बोल्यो परनै जा रांड
थोबड और आगै मांड
नासां इयां लागै जाणै सीसी हुवै गूंद री ॥
[3]
नितनेमी हा पंडत जी दोनूं टैम मांगता आटो ।
छोडता कोनी जे मिल जांवतो डांगरां रो चाटो ॥
कुत्तियां री ही अबखाई
दिक्कत ही तो ही आ ई
ईं सारू राखता साथळ ताईं प्लास्तर रो पाट्टो ॥
[4]
चीज मांगतो जणां बोलतो ओ के प्लीज ।
आसूडो इस्सो पढ्यो कै भूलग्यो तमीज ॥
टैम ही भौर री
हाजत ही जोर री
हंगण बैठग्यो पैंट री जाग्यां खोल’र कमीज़॥
[5]
रसगुल्लां री दुकान खोली प्रभु जी पूर ।
गाहक पटांवतां रै ऊडण लाग्यो बूर ॥
साल भर अड्या रे’या
रसगुल्ला सारा पड्या रे’या
छेकड जंवतां रा बिकग्या बांरा स्सै पूर ॥
[6]
मुर्गी दांईं बांग देंवती मुर्गी बाई पंडा ।
मिनखां में बैठती जद गाळ देंवती गंडा ॥
आप रै सुभाव सूं
नाम रै प्रभाव सूं
दिन में दिया करती बा पांच-सात अंडा ॥
[7]
अमेरीका रा लूंठा सोखीन मिस्टर डांग ।
गंडक ल्यांता मोल,कई ल्यांता मांग ॥
इण रो होयो असर
सरीर में होगी कसर
मूत करता मतैई उठ जांवती एक टांग ॥
[8] 
जाबक लिगतो हो बोगड़ सिँह परमार।
हरेक चीज खावण नै रैँ'वतो त्यार ॥
लुगाई कीँ घाल्यो कोनीँ
...जोर कीँ चाल्यो कोनी
रीसां बळतो चाबग्यो लुगाई री सलवार।।
[9]
टींगर परनावण चाल्यो भत्तू मल मे'रा।
बीन रूसग्यो बण लिया कोनीँ फेरा ॥
छोरी बोली आ ले
रसमड़ी निभा ले
फेरां सारु नीँ तो भेज दे बापू तेरा॥
[10]
ऐक सी सकल री ही मा अर बेटी ।
फ़ुटरापै में कोई नीं ही जाबक हेटी ॥
आयो जणां जुवाई
करग्यो बो दुवाई
मा नै सागै लेग्यो, घरां रै’गी बेटी ॥
[11]
जाबक ई भोळो हो बापडो अल्लाद्दीन ।
कूकतो फ़िल्म में देख दर्द आळा सीन ॥
आई मुकळावै री घडी
बीनणी बीं री रो पडी
बोल्यो छोडो बपडी नै म्हैं नी ईंरो बीन ॥
[12]
ऊपर सूं नीचै तांईं ऐकसा हा मिस्टर सपडा।
डाडा जंचता जणां पै’रता नूआं-नूआं कपडा॥
मावडी मळ उतारिया
बण पेट में उतारिया
घाल्या जियां पाछा आग्या खाया जका बडा ॥
[13]
पान खाय’र रमेसियै लाल कर लिया होट ।
घर आळी देख’र बोली ओ जी थानै फ़ोट ॥
पै’ली कसर ही आ’ई
अब लागो हो लुगाई
ल्यो पै’र ल्यो भलांई अब तो ओ पेटीकोट ॥
[14]
लूंठा पै’लवान हा मिस्टर भूंडा राम भभूत ।
हरा नाख्या बां कुस्ती में पै’लवान मजबूत ॥
करता जणां बडाई
आंख काढती लुगाई
डरता होळै सी पैंट में कर देंवता लाई मूत॥
[15]
गांव में स्सै सूं हुंस्यार हो सरपंच जी रो छोरो ।
आगे रेंवंतो जद होंवतो कोई मंत्री जी रो दोरो ॥
कईयां नैं फ़ंसावंतो
कईयां नै मरवांवतो
काढ्यां बिनां डी’ल में कोई छोटो-मोटो मोरो ॥
[16]
बापू बोल्या बोट पडै़ घाल’र आ रै ।
मोड़ो हुवै खेत नै जल्दी कर जा रै ॥
ढोलकी खनै जद गया
पतळा हा तिसळग्या
खुद पड़्या मांय अर बोट रेग्यो बा’रै ॥
[17]
गोष्ठी री बै’स में इस्सी लाम्बी बधी बात ।
कै ताण मारियां ई नीं सुळझी आखी रात ॥
आखतो हो सब्बळियो
सिंझ्या गाडी चढ लियो
निवड़ण सूं पै’ली दे आयो रूणीचै री जात ॥
[18]
झब्बियै री लुगाई ही बोलाक बेजा ।
सामने आळां रा खाय जावंती भेजा ॥
घर में रेवंतो नी कोई
बापडी़ पीवै कीं रो लोई
छात माथै चढ़ बा गाया करती तेजा ॥
[19]
झिंडियै री डीकरियां पतळी ही जंचा’र ।
धरियोडी हुवै जाणै सांगरियां पचा’र ॥
ऐक-ऐक कर’र
सै भेळी कर’र
तूळ्यां आळी पेटी में सुवावंता जंचा’र ॥
[20]
डाढी पींवता दारू मिस्टर तुक्कल भल्ला ।
आखै दिन होयोडा़ रेंवता चूंच अर लल्ला ॥
ऐक दिन नीं टळता
नीं मिल्यां बै बळता
टिकता तो बस पड्यां मैडमजी रा खल्ला ॥
[21]
बाज़ आळी खाली सीसी मांगी पाडोसी ।
थै तो रोज पीओ खाली तो पडी़ होसी ॥
घर में तो आत कोनी
आग्या तो बात कोनी
ल्याओ मंगाओ,खाली करां जल्दी सी ॥
[22]
ऊंदरा बोल्या दारू पीवां पै’लै तोड़ री ।
दुनियां में होवै कोनी ईं रै जोड़ री ॥
छोड़ां कोनी आ दुआई
छोड़ ई देस्यां लुगाई
लुगाई ई हुवै बेलियो ज़ड झोड़ री ॥
[23]
हथकढ री बोतल गटक’र डोल्यो ।
चांद धरती माथै उतरसी बोल्यो ॥
ऊंदरी बोली थम
साळा कुत्ता जम
खल्ल खळका चांद भेजूं अण्तोल्यो ॥
[24]
बिलडी़ तो ही कोनीं हा फ़गत ऊंदरा ।
दारू आळै ठेकै में मोटी मोटी तूंद रा ॥
दिन मॆ पस्त
रात में मस्त
रोब सूं खांवता होटल में लाडू गूंद रा ॥
[25]
आभै में जावण रो भी है ऐक रा ।
गंगलै गप्पी ठोकी ऐक दिन आ ॥
लौग बोल्या चाल सागै
धरती माथै जी नी लागै
बोल्यो चालस्यां,पै’ली बणाओ चा ॥
[26]
भोत जोर रो गप्पी हो गंगू जी रो गौपाल ।
कै"योडो पाछौ नीं लेंवतो चावै कैवो चौपाल ॥
ऐक दिन अड़ग्यौ
कोई नीं रड़क्यौ
बोल्यो अमेरिका में ही है,अठै कठै है भोपाल ॥
[27]
तीरथ सारू गई दादी बूढ़ळी ही भोळी ।
लुळ’र नहाई गंगा जी में खुलगी चोळी ॥
दीखै हो अंग आधौ
साम्ही तकै हो दादौ
बोली परनै फ़ुरौ,सरम सूं होगी मैं धोळी ॥
[28]
परलीकै रो पट्टू जी पटियाळै सूं ल्यायो घोन ।
ऐक दिन अंट’र होई खड़ी तोड़्यौ नी बण मोन॥
बोली चरदी नीं तेरा
जी नीं लगदा मेरा
किन्नै दिन होगे आया नीं मम्मी जी दा फ़ोन ॥
[29]
धूपड़ चंद जी कवि हा सांतरा ।
गीत गाया करता भांत-भांत रा ॥
सफ़लता रो राज
ठाह लाग्यो आज
सुणा’र बै भाज जांवता आंतरा ॥
[30]
हज़ामत करावण गयौ डेमलौ डांगी ।
लम्बाई देख हज़ाम निसरनी मांगी ॥
ऐक ऐक पेडी़ चढ़तौ
बोल्यौ बो रड़भड़तौ
राम देखौ,ईं रै कठै जा’र भौडकी टांगी ॥
[31]
दारू रा सौखीन हा भूतड़ जी पडि़हार ।
इण नसै लारै खो लियौ बां परिवार ॥
गळग्या जद गंडा
लेय’र झौळी डंडा
माळा फ़ेरण लागग्या जा’र हरिद्वार ॥
[32]
दारू पींवतां जद कीं राख देवंता ढक्कण में ।
ऊंदरा मज़ा लेंवता सेठजी रै ईं लक्खण में ॥
सेठाणी भौत समझावै
मक्खण क्यूं नी भावै
ऊंदरा बोल्या.बी.पी.रो रोग होवै मक्खन में ॥
[33]
फ़ोटू खैंचावण स्टूडियो गई चिमली ताई ।
सामनै बैठा,फ़ोटोग्राफ़र मींची आंख डाई ॥
ताई बठै सूं हटगी
फ़ोटू खातर नटगी
बोली,मरज्याणा पै’ली बण राखीबंद भाई ॥
[34]
सै’र री ही बीनणी पै’ली बार देखी डाग ।
झूट में ही डागड़ी मुंडै ऊपड़ै हा झाग ॥
बोली फ़ूट्या करम
ऊंटणी है बेसरम
दोपारां देखो पेस्ट करै,लागौ ईं रै आग ॥
[35]
ज़हाज़ री सवारी सारू अंटग्यौ लूधो सहारण ।
रिसाणौ होय भींतां में लाग्यौ टक्कर मारण ॥
लुगाई नै आई रीस
खल्ल टेक्या बीस
बिना ज़हाज़ ई उडग्यौ रोही में भैंसा चारण ॥
[36]
बिना बीज धरती माथै पैदा नीं होवै कोई चीज ।
गुलाब जामण में भी होया करै छोटो सो बीज ॥
धणी री सुण पाखती
लुगाई बोली आखती
तो जाओ बीज देओ खेत में कूलर-पंखा-फ़्रीज ॥
[37]
मैडम रै पग में पड़गी मजरोड़ ।
डागधर सूं संध्यौ नीं ऐडी रो जोड़॥
काळियै रै होगी फ़स्सी
झाल’र हाथ में कस्सी
खोद न्हाखी बीं भादरा आळी रोड़ ॥
[38]
मैडम रै चढग्यौ मलेरिया बुखार ।
काळू ल्यायौ डागधर जी नै बुला’र॥
दागधर देखी नाड़
पछै पाई बीं झाड़
मैडमजी नैं राखौ माछरां सूं लुका’र॥
[39]
ऐक दिन ,ऐक ऊंदरो अंटग्यौ गाम रो ।
बोल्यो खाऊं तो खाऊं अचार आम रो ॥
ऊंदरी बोली ओ बाबू
मन नै राख तूं काबू
बिल में कींयां लगै मोटो रूंख आम रो ॥
[40]
गांव मे डाकौत हो नांव हो दौगड़ ।
गाय मिली दान में लारै हो टॊगड़ ॥
रूई टाळ भावै नीं
चारौ कोई खावै नीं
छेकड़ नीर दियौ गूदडां रो लोगड़ ॥
[41]
गंजो हो थाणेदार पण राखतौ कांगसी ।
मन ई मन उपाड़ लेंतौ सिर में मांग सी॥
चोरां रै होगी मोज
कांगसी देंता रोज
नीं ले जांवतां जकां रै मारतौ डांग सी ॥
[42]
गंगाजी में नहावण गया गंगू जी गंगोटा ।
गऊघाट माथै देख्या बां पंडा मोटा-मोटा ॥
म्हैं ई बणतौ पंडौ
जे होंवतौ् म्हैं रंडौ
ब्या कर’र घर आळां के काढ लिया गोटा ॥
[43]
कोई फ़रक नीं हो कागलै अर टोनियैं रै मासै में ।
और काळौ होग्यौ नौकरी करतां-करतां बासै में ॥
कपडा़ जद पै’रतौ धोळा
लुगाई करती भोत रोळा
थै तो इयां लागौ,जाणै मकौडो बड़ग्यौ पतासै में ॥
[44]
सीख जिसौ पतळौ हो सोटियौ सपडौ़ ।
ओपतौ कोनीं डील माथै कोई कपडौ़ ॥
ऐक दिन आई रीस
गाभा पै’र लिया बीस
चालतां ई पड़ग्यौ सांस आळौ लफ़डौ ॥
[45]
ऊंदरी बोली ऊंदरै सूं बचन सुणौ बांदी रा ।
चालौ आपां धनवाद करां महात्मागांधी रा ॥
टूट जांवता दांत
गळ जांवती आंत
कागज़ री जाग्यां जे नोट चाल जांता चांदी रा ॥
[46]
दारू पी पा सेठ बोतल कर दी जरू बंद ।
खुली नीं ऊंदरां सूं घसग्या दांत आळा संद ॥
छेकड़ सोफ़ी ई सोया
पण सारी रात रोया
मरै कोनीं सेठ,मरज्याणौ साळौ कुत्तौ गंद ॥
[47]
सेठजी रै बाव सुरियो आधी सी रात नैं ।
ऊंदरौ-ऊंदरी लडि़या , पकड़ ईं बात नैं ॥
छूट्यौ है बम्ब गोलौ
नीं,कोई और है रोळौ
ओबामा सूं बातडी़ करस्यां परभात में ॥
[48]
दारू पी ऊंदरा बोल्या मिनकी नै कूटस्यां ।
भेळा होय सगळा आज रांड माथै टूटस्यां ॥
चढी जद विसकी
फ़ूंक बांरे खिसकी
पकड़ लिया तो फ़ेर आपां कीकर छूटस्यां ॥
[49]
बिल्ली ही फ़ूटरी ऊंदरै रो मन डोलग्यौ ।
खन्नै जाय’र बो आई लव यू बोलग्यौ ॥
बिल्ली होई राज़ी
बोली,जा रे पाज़ी
तन्नै के खाऊं तूं तो म्हरौ रूप तोलग्यौ ॥
[50]
मायड़ भाषा बिना क्यांरी है जियारी ।
कोई पूछौ नीं आय’र हालत म्हारी ॥
दूजा दळै है मूंग
म्हारै बतावै गूंग
खोस’र नौकरियां मोकळी सरकारी ॥
[51]
दिल्ली-जयपुर भेजै अंग्रेजी में राज रा फ़रमान ।
म्हानै तो भाईडां कोनी ठीकसर हिंदी रो ई ग्यान ॥
जामां गूंगा ई
मरां गूंगा ई
ठाह नीं कद मिलसी मायड़ भाषा में बोलण रो विधान ॥
[52]
आपणै लौकराज री देखौ कारसतानी ।
नेता बोट तो मांगै बोल’र राजस्थानी ॥
जनता सूं करै वादा
संसद में बणै दादा
मानता री बात माथै ताकै बगलां खानीं ॥
[53]
गोगो जांभौ रामदेव है राजस्थानी ।
जकां नै धौकै समूळा हिंदुस्तानी ॥
पेट पिलाण भाज्या आवै
राजस्थानी भजन गावै
संसद क्यूं टाळै भाषा राजस्थानी॥
[54]
पंछी बोल्या आपां बोलां हां आपणी भाषा ।
आं राजस्थान्यां रै पड़ रैया है देखौ सांसा ॥
सब कीं जाणतां
देवै नी मानता
साठ साल सूं आं बापडा़ नै मिलै है झांसा ॥
[55]
त्रिपाठी सर ढाळ नै क्यूं बोलै है ढाल ।
म्हे नीं बोलां तो कूट कूट काढै खाळ ॥
भाषा बिन्यां तो दुरगत है
गूंगां री ई कोई गत है
मायड़ भाषा में क्यूं नी पढावै ऐ हाल ॥
[56]
गा ब्याई   टोगडियौ ल्याई   च्यार बिलांत रो ।
दूवणियै रै झटको मारतौ चौखो सो लात रो ॥
गा रै चौफ़ेरै झूमग्यो
दूध    सारो     चूंघग्यो
सिंझ्या पै’ली बणग्यो बो गौधो ऐक जात रो ॥
[57]
दैनिक अखबार काढ्यौ मिस्टर तरेश शरमा ।
फ़टाफ़ट छाप लिया  सात आठ रंगीन फ़रमा ॥
सलाह तो नेक ही
मान्यो नी ऐक ही
अजकाळै चुगतो फ़िरै लाई गाडै लारै नरमा ॥
[58]
लूंठा पै’लवान हा मिस्टर भूत मलजी भूतिया ।
हरा काढता लूंठां नै कै’ परा पै’लवान ऊतिया ॥
करता खुद री बडाई
आंख काढती लुगाई
डरता लाई कर देंवता झट पेंट में ई मूतिया 
[59]
टीको काढ गमछो टांग गाभा पै’रता नूआंनुक ।
ब्यांव  खातर  रैंवता       पंडत जी  हरमेम बुक ॥
रासण ल्यांता कोनीं
रोटी ई खांता  कोनी
काम धिका लेंवता बै खा परा घरआळी रा डुक ॥
[60]
मिनकी रो ब्या मंड्यो    जानी आया ऊंदरा ।
बोल्या , खावां तो खावां   लाडू म्है गूंद रा ॥
बिल्लां रो डर दिल में
सोया सगळा   बिल में
घराती मांगण लाग्या जद नाप बांरी तूंद रा ॥
[61]
गुळसंटै जेडौ मीठौ बोलतो नंदू आळौ फ़त्तौ ।
बातां में रस घोळतौ बो      सेत सूं भी बत्तौ ॥
करतो जणां हताई
हों जांवती अबखाई
राफ़ां ऊपर लाग जांवतौ सेतमाख्यां रो छत्तो ॥
[62]
जोर रो कवि मच्यो खदेसियो खदाणी ।
कविता में कैं’वतौ बो लूंठी सी कहाणी ॥
काढ्तो राग बो ऊंची
राफ़ां फ़ड़तौ   समूची
सुणन आळा फ़ेर जांवता मुंडै में मधाणी ॥
[63]
फ़ूसियै रा झींटा झाल’र बोली ताई ।
लाडी तूं क्यूं इत्ती आ जट है बधाई ॥
बाळ’र ऐक झांपो
लगा दिन्यो लांपो
भाई री टाट    गोडो सी काढ ल्याई ॥
[64]
पै’ली बार पान खा्य’र आयो जणां रामलो ।
ईसकै री आग में बळग्यो देख’र श्यामलो ॥
जा’र लारली गळी
पूरी कर ली रळी
मुंडौ कर लियो लाल होट चाब’र सामलो ॥
[65]
नूंओ नूंओ परकासण खोल्यो भाई सब्बूजी सांखळा ।
पै’ली पोत छापण ढूक्या    कागद जी रा  डांखळा ॥
छापै कींयां पोथी
बातां तो ही थोथी
गुड़गांवै सूं उडग्या चुपचाप      लगा लगू’र पांखळा ||
[66]
पंडत जी  रो ,  खराब होग्यौ लेपटोप ।
अब कींयां सुणै , लुक’र संगीत पोप ॥
राजी होय बोली मैडम
खुद    छेडां    सरगम
म्हूं बणूं गोपी थारी अर थे बणौ गोप ॥
[67]
सागै बिना चालै नीं   जूण बात है नी टोप ।
चार्जर बिनां  जवाब देग्यौ     देखौ लेपटोप ॥
थे ऐकला ई फ़िरो
दिखै  बठै ई टिरो
हो फ़िस्स,पण समझौ खुद नै मुगलां री तोप॥
[68]
बीनणीं रै सोख चढ्यौ सीखूंगी कम्प्यूटर ।
खरीद लेपटोप र राख लियौ ऐक  ट्यूटर ॥
ट्यूटर रै आयगी ही तार
बळ भुजियौ हो भरतार
नौकरी छोड’र बणग्यौ बीनणीं रो क्यूरेटर ॥
[69]
क्यूं मचकावै बावळी सारै दिन ओ लेपटोपियो ।
जा मांज’र ल्या पीतळ आळौ काळो है टोपियो ॥
पै’ली दूह’र ल्या गावडी़
पछै रांध’र ल्या चावडी़
खेत सूं आंता ई गाळ काढसी सुसरो थारो भोपियो ॥
[70]
आखै दिन घर सूं नीं निकळतौ पप्पू आळौ पोपियो ।
बीनणी ई सारै बैठती,दायजै में आयौ हो लेपटोपियो ॥
नौवैं मईनै जाम्यो टाबर
जाबक   लेपटोप बराबर
गळी आळा बोल्या,अबकै तीनां रो मेळ चौखो ओपियो ॥
[71]
हिलमिल होळी खेली      ऊंदरां दिखायो हेत ।
फ़ूल तोड़ ल्याया लाल-लाल जद गया खेत ।
रगड़ बणायो रंग
सागै    घोटी भंग
मिनकी रै डर सूं पीग्या भांग   रंग समेत ॥
[72]
सिर हो मोटो पण   पतळी ही कड़तू ।
ब्या होयो नीं अर कुंआरो रै’ग्यो पड़तू।
बुडापै में लाग्यो नाको
बोल्यो ऊंचो कर बाको
देखता रै’ईयो अब बांध देस्यूं भड़तू ॥
[73]
नरेगा रै कारड़ में चिपकावणी ही फ़ोटू !
मोटी जोडा़यत साथै कोड में बैठ्यो कोटू ।
फ़ोटोग्राफ़र गिण्या तीन
कैमरै में आयो नीं सीन
बो बोल्यो बाबै नै भेज तूं उठज्या छोटू ॥
[74]
रीसां में बोल्यो ऐक दिन खेमलो खिलाडी़ ।
दारू पीवण नीं देवै रांड आयगी अनाडी़ ।
गया नीं    होटल
खोली नीं बोतल
इयां तो भूखा ई मरजासी बापडा़ कबाडी ॥
[75]
ऊंदरै भेज्यो ऊंदरी नै        ऐक दिन ई मेल ।
धरती माथै तो है कोनी थारै जिसी फ़िमेल ।
ऊंदरी बोली     रुक
पै’ली देख फ़ेसबुक
बठै लाधसी  लाडी म्हारै जिसी रेल री रेल ॥
[76]
ऊंदरी बोली कार ल्याओ चढूं कोनीं बस में ।
जी घुटै म्हारो     भीड़-भाड़ अर भारी रस में ।
ऊंदरो बोल्यो धिक्कै कोनीं
तूं म्हारै अब टिक्कै कोनीं
थारै जिसी तो होवणी चाईजै     सरकस में ॥
[77]
ऊंदरी ही पेट सूं डागधर जी करी सोनोग्राफ़ी ।
पेट में दिख्या बच्चिया अणगिणत अर काफ़ी ।
करो ना रीस
लेऊं नीं फ़ीस
म्हारै कोनीं इत्ता पालणियां    म्हनै देवो माफ़ी ॥
[78]
देखो जमानै में फ़ैसन      बदळ्या है दस्तूर ।
ऊंदरी बोली ऊंदरै सूं     आपणो काईं कसूर ।
देखो टींगर-टींगरी
फ़ैसन में फ़ींगरी
हाथै फ़ाड़-फ़ाड़ पै’रै आपरा पै’रण आळा पूर ॥
[79]
ऊंदरो बोल्यो ऊंदरी सूं      सुणै है काईं स्याणी ।
आज तो लड़ मरिया आपणां सेठ अर सेठाणी ॥
बात कोनीं छोटी
पकै कोनी रोटी
ऊंदरी बोली डरो ना होटल सू आसी रासण पाणी ॥
[80]
ऊंदरी जाम्यो ऊंदरो  ऐक सकल मिलै बिल्ली सूं ।
काईं बतावै दाई ऊंदरै रो फ़ोन आयो दिल्ली सूं ।
सतगुरू तेरी ओट है
ऊंदरी में तो खोट है
लाई ऊंदरो कींयां बचसी जग में उडती खिल्ली सूं ॥
[81]
खेमलै रै जंचगी      खेलण सारू होळी ।
दिनूगै उठतां ई खा ली भांग री गोळी ।
नसै में पडी़ नी ठा
लुगाई पै’रा दी ब्रा
फ़ेर घूम्यो सारै    दिन पै’र परो चोळी ॥
[82]
गैर रमण सारू निकळ्यो नंगियो नंग ।
गाबा खोल टाबरां करियो नंग धड़ंग ।
आई जणां लाज
धोरै चढ्यो भाज
फ़ेर बजायो बण आंख मींच’र चंग ॥
[83]
ऐसकै भड़तू खेली होळी बडी़ तेज ।
कोड-कोड में बण रंग दियो अंगरेज ।
थे तो करियो तंग
म्हे गेरां खाली रंग
रंगीज जा नीं तो बणा लेस्यूं मिसेज ॥
[84]
खड़कू खोडि़यै री भू भी खोड़ली ।
सुसरै नै रंगण लारै-लारै दौड़ली ।
बूढियै नै पटक
रंग दियो चटक
रीसां बळती सासूडी़ चूडी़ फ़ोडली ॥
[85]
दारू रै नसै में     भुणियों बेगो आयो घरां ।
बोल्यो- आज तो      किणीं सूं ई नीं डरां ।
दीखी जद लुगाई
पाछी दौड़ लगाई
बोल्यो आज फ़ेर मरस्यां जियां रोज मरां ॥
[86]
भांग रै नसै में हो भूंड मल भंडार ।
लुगाई घरां ल्याई पालणियों मंडा’र ।
म्हारै साथै खेलो होळी
बोल्यो,ना ऐ नार भोळी
थांनै रंगां तो कूटै बा म्हारली रंडार ॥
[87]
ऊंदरां मिल विचारी होळी रमण री ।
मिनकी तकाई बां हलवाई झमण री ।
देखी बीं री आंख लाल
हाथ सूं छूटगी गुलाल
फ़ेर तो खबर ई आई ऊंदरा गमण री ॥
[88]
होळी खेळण री ऊंदरां रै आई दिल में ।
खेलां तो खेलां    मिल’र अबकै बिल में ।
ल्याया पिचकारी
मार’र टिचकारी
बोल्या-दारू भी तो ल्याओ महफ़िल में ॥
[89]
गुड़गांवै री ऊंदरी अर ऊंदर हो दिल्ली रो ।
शेर नै मारता    पण डर तो हो बिल्ली रो ।
ऊंदरी बोली होळी है
मिनकी पूरी धोळी है
रंगो तो ठाह लागै आज      शेखेचिल्ली रो ॥
[90]
आओ बेलियो छोडो सगळी राम्पारोळी ।
भेळा होय आपां सगळा मनावां होळी ।
कविडो़ तो नटग्यो
खड़्यै पगां अंटग्यो
बोल्यो-पै’ली बताओ कुणसो देस्सी न्योळी ॥
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