रविवार, अप्रैल 11, 2010

ओम पुरोहित “कागद” की चार कविताएं


थिरकती है तृष्णा

थिर थार पर

थिरकती है तृष्णा

दौड़ता है मृग

जलता है जल

टलता है जल


मरता है मृग

फाड़-फाड़ दृग

रहती है तृष्णा

देखता है थार

पूछता है थार;

कौन है बड़ा,

मृग

तृष्णा

या फिर मैं

जो रहूंगा थिर ।



पांचवें तत्व का नाम

उगता है

जब कोई

नया नन्हा पौधा

और

पूछ बैठता है

उसके होने में

काम आए

उस पांचवें तत्व का नाम

तू कैसे बता पाती होगी

बरसों से

तुझ पर नही उतरे

उस पांचवें तत्व का नाम ।


ओ भटके प्रीतम मेघ

तेरे ही वियोग में

किए बैठी है सोलह श्रृंगार

और

तू इसे

बीते यौवन की प्रौढ़ा समझ

त्याग बैठा है

सोत चेरापूंजी के घर

ओ भटके प्रीतम मेघ !

घुमड़ कर आ

औढ़ा तीतर पांखी चूनर

बैठ सोनल सेज पर

फिर देख

कैसे टूटता है गुमान

सौत चेरापूंजी के रूप का ।



फलेंगे रसाल

जब तक

सांस है

आस है;

थार के रोम-रोम पर

उगेंगे

हरियल रूंख

फलेंगे रसाल

आच्छादित होंगे

हरितपर्ण अनायास

ज्यों रोही में

सूनसान धोरे पर

उग आता है

गीला गच्च भंपोड़ ।


11 टिप्‍पणियां:

  1. aadarniy sir aapki charo hi rachnayen padhi .har rachana ek alag bhav liye huye hai.aapke shabdo ka chunav mujhe bahut hi achha laga aur kuchh naya seekhane ki prerana bhi mili.hardik aabhar.

    poonam

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  2. सर्वप्रथम श्रद्धेय श्री ओम जी प्रणाम ।

    श्री ओमजी की कविताओं के बारे मे कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने समान है| फिर भी मैं टिप्‍पणी कर स्‍वयं को धन्‍य समझूंगा|
    अन्‍तर्मन की मूर्त भावनाओं के उच्‍चस्‍तरीय चित्र उकेरने की जो महारथ ओमजी को हासिल है, वो अन्‍यत्र बहुत कम देखने को मिलती है|
    आपकी चारों ही रचनाएं बेहद उम्‍दा और गहनता लिये हुए है और बहुत पसन्‍द आई| सबसे खास बात ये कि आपकी हर रचना में मिट्टी के प्रति जो प्‍यार, लगाव और जो सौधी खुशबू है वो अन्‍तर्मन को सिंचित कर रोम-रोम को महका जाती है, उसको मैं नमन करता हूं | जय भारत । जय राजस्‍थान ।
    प्रणाम ।

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  3. thaar ke marm ko pratibimbit karti aapki kavitaen padhkar lage ki thaar hariya uthega..ya ki hariya hi utha h. thaar ki thirta aur uske antas men basi paani aur megh ki lalak to bhut hi choo jaane wane shabdon men pieoya h aapne.... shubhkamnaen..

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  4. aapki sari rachnaye bahut acchhi aur gehre bhaav liye hue hai...bahut pasand aayi...dhanyewad mere blog tak k safar k liye.

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  5. सर जी ,
    एक ही साथ इतनी सारी ....???
    राहत तो लेने देते जरा .....???

    बहुत ही गहरी और भावपूर्ण .....!!

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  6. बहुत बढ़िया लगा सभी कवितायेँ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ बेहतरीन प्रस्तुती!

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  7. ॐ जी ,
    सादर वन्दे

    बहुत टिप्पियों में जो कहा गया दुहराऊँगा नहीं .बस ये कि आपमें ' कविता ' का एक ' सशक्त हस्ताक्षर ' देख रहा हूँ मेरी नज़र में.

    ' हायकू ' विधा पर आपसे जो जाना वह भविष्य में मेरे बहुत काम आएगा .

    विनम्रता नहीं सच्चाई से कह रहा हूँ कि भाषाएं तो कई जनता हूँ ,पढता भी हूँ और हर विधा का आनंद भी लेता हूँ पर ,किसी भाषा की छंद विधा से बहुत अनजान हूँ .
    इसलिए जब आप जैसे जानकार कुछ बताते हैं तो कृतज्ञ ही होता हूँ .
    धन्यवाद !

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  8. आदर जोग ॐ जी
    सादर ,
    आप कि कविताओं कि मैं कैसे प्रसंशा करू , आप कि चारो कविताए दिल को छूने वाली है और होती भी है , एक प्ररणा प्रदान करते है ,अपने उद्बोधन में और रचनाओं में एक सीख , एक दर्शन होता जो बरबस आप कि और खीच लेता है , साधुवाद , अच्छी रचनाओं के लिए .

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  9. चार रचनाएँ...चार चित्र. जीवन को कविता में उतार लेने के फन से आप बखूबी वाकिफ हैं. मैं स्तब्ध रह गयी इन कविताओं को पढकर. क्या शब्द, वो भी फ्री वर्स में, इतना गहरा प्रभाव छोड़ सकते हैं? दुखी भी हुई कि इतना महान रचनाकार बार-बार मेरे ब्लाग पर आया और मैं धन्यवाद ज्ञापन के लिए भी समय नहीं निकाल सकी.
    आपको पढना एक सुखद अनुभव है. जिसने आपको नहीं पढ़ा वह इस रहस्य से परिचित हो ही नहीं सकता.
    मैं अपनी गुस्ताखी के लिए "क्षमा बडन को...." का सहारा लेना चाहती हूँ और मुझे विश्वास है कि वह तो हासिल हो ही जाएगा. पुनः धन्यवाद और इस विश्वास के साथ अपनी बात यहीं खत्म करती हूँ कि अब आपको शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा.

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  10. किताबों को फिर से केंद्र में लाने के लिए बोधि प्रकाशन एक प्रयोग करने जा रहा है।
    दस-दस किताबों के दस सेट 'बोधि पुस्तक-पर्व' के तहत प्रकाशित किये जायेंगे।
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  11. sukhad aashchary tha jab aapko follower bana dekha .
    soubhagy hai ki aapkee gahrayee liye behatreen rachanae padne ka avsar mila.....
    aabhar.

    mai bhee Nagaur me hee janmee.dus saal kee umr me jo rajasthan chutyo pacho aano konee huyo .Ha Almer me nandero hai to kadee kadee chakkar laag jav hai.......mhan jab bhee moko mil hai marwadee bolwa ko
    acchho lag hai....

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