पानी के गीत
हम सपनों में देखते थे
प्यास भर पानी।
समुद्र था भी
रेत का इतराया
पानी देखता था
चेहरों का
या फिर
चेहरों के पीछे छुपे
पौरूष का ही
मायने था पानी।
तलवारें
बताती रहीं पानी
राजसिंहासन
पानीदार के हाथ ही
रहता रहा तब तक।
अब जब जाना
पानी वह नहीं था
दम्भ था निरा
बंट चुका था
दुनिया भर का पानी
नहीं बंटी
हमारी अपनी थी
आज भी थिर है
थार में प्यास।
नीरज दइया लिखते हैं- "इसै समै / कविता बांचणौ / अनै लिखणौ / किणी जुध सूं स्यात ई कम हुवै ।" (कविता) ओम पुरोहित ‘कागद’ रा च्यार कविता संग्रह प्रकाशित हुया है- अंतस री बळत(१९८८), कुचरणी (१९९२), सबद गळगळा (१९९४), बात तो ही (२००२) अर आं रचनावां में कवि री सादगी, सरलता, सहजता अर संप्रेषण री खिमता देखी जाय सकै । कवि राजस्थानी कविता रै सीगै नैनी कविता री धारा नै नुवै नांव दियो- ‘कुचरणी’ अर केई अरथावूं कुचरणियां रै पाण आधुनिक राजस्थानी री युवा-पीढ़ी री कविता में आपरी ठावी ठौड़ कायम करी है । कविता नै प्रयोग रो विसय मानण वाळा केई कवियां दांई ओम पुरोहित ‘कागद’ री केई कवितावां में प्रयोग पण देख्या जाय सकै है अर एक ही शीर्षक माथै केई-केई कवितावां सूं उण विसय नै तळां तांई खंगाळणो ई ठीक लखावै । कवि रो कविता में मूळ सुर अर सोच मिनखा-जूण अनै मिनख री अबखायां-अंवळ्या खातर है जिण में कवि ठीमर व्यंग्य ई करण री खिमता राखै ।
बहुत ही सुन्दर, शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
जवाब देंहटाएंअब जब जाना
जवाब देंहटाएंपानी वह नहीं था
दम्भ था निरा
बंट चुका था
दुनिया भर का पानी
नहीं बंटी
हमारी अपनी थी
आज भी थिर है
थार में प्यास।
Sundar aur bhavpoorna---samvedanaon kee sundar prastuti.
याद है रातों की वो बातें
जवाब देंहटाएंयाद है हर शब्द पर टोकना
याद है हर अक्षर पर समझाना
याद है हर बात पर खबर बताना
याद है आपका वो घाव
याद है मेरा वो दर्द
याद है मॉसी का वो प्यार
याद है मॉमी का रोटी के लिए इंतजार
याद है गुदगुदाती वो बातें
बस भूलना चाहता हूं कुछ पल
बस भूलना चाहता हूं कुछ क्षण
स्म़ति से मिटती नहीं वो तीन फीट की दीवार
इधर से उसका झांकना
उधर से उसका अंदाज मस्ताना
क्यों बदल जाते हैं रंग दुनिया के मामा
समझ में आए तो मुझे भी बताना
आपके पानी का तो जवाब नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से पानी के नये नये अर्थ गढ़ लिए आपने
अभी तक तो रहीम की ....बिन पानी सब सून .........ही याद थी अब आपके पानी को भी याद रखना होगा
वाकई अच्छा लगा आपकी हिन्दी कविता पढ़कर
आपने मेरी इच्छा का सम्मान रखा , धन्यवाद ...
अब जब जाना
जवाब देंहटाएंपानी वह नहीं था
दम्भ था निरा
बंट चुका था
दुनिया भर का पानी
नहीं बंटी
हमारी अपनी थी
आज भी थिर है
थार में प्यास...
बस जी ये प्यास यूँ ही थिरती रहे ......!!
अब जब जाना
जवाब देंहटाएंपानी वह नहीं था
दम्भ था निरा
बंट चुका था
दुनिया भर का पानी
नहीं बंटी
हमारी अपनी थी
आज भी थिर है
थार में प्यास...
बस जी ये प्यास यूँ ही थिरती रहे ......!!
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएं"थार में प्यास"
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण कविता है , जो कहीं मर्म को छू रही है…
"हम सपनों में देखते थे
प्यास भर पानी।"
तो , कहीं आईना दिखा रही है…
"समुद्र था भी
रेत का इतराया
पानी देखता था
चेहरों का"
"पानी वह नहीं था
दम्भ था निरा"
भाई ओमजी , बधाई भावपूर्ण एवं विचारशील कविता के लिए !
मैं कहूंगा कि "आज भी थिर है थार में प्यास"
… और वो थार मैं स्वय हूं , जहां स्थिर है प्यास आपकी कविताओं की !
आपका ही - राजेन्द्र स्वर्णकार
प्यास सबको एक सी लगती है ! पर पानी सबको एक सा नहीं मिलता .....
जवाब देंहटाएंआपकी कविता बहुत सुन्दर है ... इस कविता की रूह मैं कहीं थार बसा हुआ है ...
Aaj bhi thir hai.....
जवाब देंहटाएंThaar kee pyaas!
Achook!
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जवाब देंहटाएंशब्द सत्ता भी होनी चाहिए।
अर्थवत्ता भी होनी चाहिए।।
काव्य है मात्र नहीं तुकबंदी-
बुद्धिमत्ता भी होनी चाहिए॥
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आपकी रचना में उक्त कारक
प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं।
पानी के माध्यम से आपने
इतिहास के पृष्ठों में दबे सभ्यता
के रहस्यों को उद्घाटित कर दिया
है। काव्य-शक्ति का सार्थक
प्रयोग....बहुत...बहुत बधाई।
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जवाब देंहटाएंशब्द सत्ता भी होनी चाहिए।
अर्थवत्ता भी होनी चाहिए।।
काव्य है मात्र नहीं तुकबंदी-
बुद्धिमत्ता भी होनी चाहिए॥
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आपकी रचना में उक्त कारक
प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं।
पानी के माध्यम से आपने
इतिहास के पृष्ठों में दबे सभ्यता
के रहस्यों को उद्घाटित कर दिया
है। काव्य-शक्ति का सार्थक
प्रयोग....बहुत...बहुत बधाई।
अत्यंत भावपूर्ण कविता है
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