वाह…कागा सब तन खाइयो , मोरा चुन चुन खाइयो मांस ।दो नैना मत खाइयो , मोहे पिया मिलन की आस ॥की याद हो आई । श्री राजेन्द्र यादव को कवि ओम पुरोहित “कागद” का नया रूप रंग प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ।
फफोले उफनेमेरे तनभीतर भरा मवादऐसी गर्मी तन बसीजन रहा न मेरे पास ।क्या परिभाषा है ... वाह !
जोरां है सा.लखदाद
bahut hi gahan vichaaron ka samavesh hai in shabdon kee shrinkhla me
सुन्दर अभिव्यक्ति है।
aap dono ki hi pratibha ka kayal hun
उमसघूमस कर रहीदेती तपन असहायतन मेरा जल मरामन रहा तेरे पास ।वाह...वाह....बहुत खूब ....!!
वाह सुंदर भावाभिव्यक्ति साधुवाद
वाह…
जवाब देंहटाएंकागा सब तन खाइयो , मोरा चुन चुन खाइयो मांस ।
दो नैना मत खाइयो , मोहे पिया मिलन की आस ॥
की याद हो आई ।
श्री राजेन्द्र यादव को कवि ओम पुरोहित “कागद” का नया रूप रंग प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ।
फफोले उफने
जवाब देंहटाएंमेरे तन
भीतर भरा मवाद
ऐसी गर्मी तन बसी
जन रहा न मेरे पास ।
क्या परिभाषा है ... वाह !
जोरां है सा.
जवाब देंहटाएंलखदाद
bahut hi gahan vichaaron ka samavesh hai in shabdon kee shrinkhla me
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंaap dono ki hi pratibha ka kayal hun
जवाब देंहटाएंउमस
जवाब देंहटाएंघूमस कर रही
देती तपन असहाय
तन मेरा जल मरा
मन रहा तेरे पास ।
वाह...वाह....बहुत खूब ....!!
वाह सुंदर भावाभिव्यक्ति साधुवाद
जवाब देंहटाएं