बुधवार, जून 16, 2010

ओम पुरोहित कागद की सात हिन्दी कविताएं

सात अकाल चित्र


1.मिले तो सही

धोरों की पाळ पर
सळफलाती घूमती है
जहरी बांडी
मिलता नहीं कहीं भी
मिनख का जाया ।

भले ही
हो सपेरा
मिले तो सही
कहीं
माणस की गंध ।

2. यही बची है

सूख-सूख गए हैं
ताल-तलायी
कुंड-बावड़ी
ढोरों तक को नहीं
गंदला भर पानी ।

रेत के समन्दर में
आंख भर पर जिन्दा है भंवरिया ।
यही बची है
जो बरसाती है
भीतर के बादलों से
टसकता खारा पानी ।

3. जानता है नत्थू काका

भेड़ की खाल से
बहुत मारके का
बनता है चंग
जानता है नत्थू काका
पर ऐसे में
बजेगा भी कैसे
जब गुवाड़ में
मरी पड़ी हों
रेवड़ की सारी की सारी भेड़ें
चूल्हे में महीने भर से
नही जला हो बास्ती
और
घर में मौत तानती हो फाका ।

4. मौत से पहले

सूख-सूख मर गईं
रेत में नहा-नहा चिड़िया
नहीं उमड़ा उस पर
बिरखा को रत्ती भर नेह ।
ताल-तलाई
कुंड-बावड़ी
सपनों में भी
रीते दिखते हैं
भरे,
कब सोचा था उस ने
मौत से पहले
एक साध थी;
नहाती बिरखा में
दो पल सुख भोगती
जो ढकणी भर बरसा होता मेह ।

5.ढूंढ़ता है



खेत में पाड़ डाल-डाल
थार को
उथल-पुथल कर
ढूंढ़ता है सी’ल;
आंगली भर ही सही
मिले अगर सी’ल
तो रोप दे
सिणिया भर हरा
और लौटा लाए
शहर के ट्रस्ट में
चरणे गई धर्मादे का चारा
थाकल डील गायें ।

6. कहीं तो बचे जीवन


आंख उठाये
देखता है देवला
कभी आसमान को
और टटोलता है कभी
हरियाली के नाम पर बची
सीवण की आखिरी निशानी ।

कहीं तो बचे जीवन
जो कभी हरा हो
जब बरसे गरज कर
थार में थिरकता पानी ।

7. तपस्वी रूंख

सिकी हुई रेत में
खड़ा है
हरियल सपने लेता
खेजड़े का तपस्वी रूंख ।

बरसे अगर एक बूंद
तो निकाल दे
ढेर होते ढोरों के लिए
दो-चार पानड़े
और टोर दे थार में
जीवन के दो-चार पांवड़े ।




थिरकती है तृष्णा ( कविता -संग्रह ) 2005 से

8 टिप्‍पणियां:

  1. क्या कहू सर ! अदभुद रचना... शहर में रहने वाली कवि गन... बाज़ार लिखते हैं.. बालाएं लिखते हैं.. खेत खलिहान.. चल्हे चौके बावड़ी .. सब छोट गए हैं.. आपकी कविता में उन्हें पा कर मन तृप्त हो जाता है... लगता है कविता आज भी सार्थक है.. जन जन का प्रतिनिधित्व करने वाली कविता लिखी जा रही है... नए बिम्ब का प्रयोग भी है... बधाई

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  2. अद्भुद मार्मिक कवितायेँ मन को छू गयीं बहुत नए और ताज़े बिम्बों के साथ ..बहुत बधाई ...

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  3. जी हाँ ...यही हैं थार की पहचान बन चुके अकाल की सच्ची प्रतिनिधि कवितायेँ ...भाषा की ठावी ठसक ... बिम्बों में भरी मार्मिकता..जैसे अकाल पीड़ित थार खुद अपनी व्यथा सुना रहा हो ....बहुत बहुत आभार..

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  4. Aap ka Shabdon ka Ujala par aana achha laga.....
    Aur bhee achha laga aap ka Baat kahne ka style....
    "Punjabi style" ..... I like that....
    Aap kee sabhee rachnayen padee...ek se badkar ek hain.
    Mere pass shabad nahee hain aap kee tareef ke leye... Aur jab shabad na ho to...
    Wah ! Wah ! aur Wah !!!!!

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  5. भारत के गाँव देहात, उनमें पनपती ज़िंदगी, उनके सवालात, उनके संघर्ष पर कागद साहब की पकड मज़बूत है, ये कवितायें राजस्थान के अंतिम आदमी के, उसके दैनिक जीवन पर कवि के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, जिन लोगों,समुहों अथवा सत्ताधीशों को गाँव नज़र नही आता या उसे छुपाने की कैसी भी कोशिश की जा रही है, उन तत्वों पर करारी चोट हैं कागद. सादर

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  6. सभी रचनायें बेहद प्रभावशाली ......!!

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  7. सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक है,बेहतरीन।

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