सोमवार, जून 21, 2010

पांच पंचलड़ी



(1)
मत कर झूठी प्रीत सखा।
चला प्रीत की रीत सखा॥
प्रीत क्योँ पाले रीत भर।
हो थोड़ा भयभीत सखा॥
रीत की प्रीत पाली तो।
क्योँ ढूंढ़े मनमीत सखा॥
मन का मन से हो नाता।
सुन मन का संगीत सखा॥
सुर साधो दिल के अपने।
गाओ मिल कर गीत सखा॥


(2)
 देख देस रा हाल डावड़ा ।
हाकम खावै माल डावड़ा॥
भूखा करै उपवास अठै।
धाया बजावै गा'ल डावड़ा॥
चाट लिया हक सगळा थारा।
अब तो बां नै पाल डावड़ा॥
रोटी रो रोळो रोज अठै।
कूकर काटै साल डावड़ा॥
रजधानी मेँ गोधा घुसग्या।
काढण चालां चाल डावड़ा॥


(3)
लाजां मरग्या देख आज बापजी।
हाथां थरप्यो लोकराज बापजी॥
नेता रै घर मेँ नेता जामै।
आपस मेँ बांटै ताज बापजी॥
कोठ्यां मेँ पीजा गटकै गंडका।
गरीब रै कोनीँ अनाज बापजी॥
करजै सूं चालै रोज रसोई।
उतरै कोनीँ ब्याज बापजी॥
नेता तो बरतै बत्तीसूं भोजन।
अठै नीँ बापरै प्याज बापजी॥


(4)
छाती रो भार मिटसी देखी।
धरती रो भार घटसी देखी॥
हाल अंधारो है चौगड़दै।
आभै री धूड़ हटसी देखी॥
हाकम हाल तांईँ मिज़ळा है।
जनता रा जाप रटसी देखी॥
पाव कमावै मण खरचै।
जनता हिसाब करसी देखी॥
अमर कोनीँ बै कुरसी आळा।
टैम आयां स्सै मरसी देखी॥


(5)
लोग कमावै थारो क्यूं।
रोटी मांग्यां मारो क्यूं॥
है मुंडै मीठी बातां।
अंतस थारो खारो क्यूं॥
धण पकावै रोटी देख।
थारो जीमण चारो क्यूं॥
हारयां पाछा आओ थे।
जन सेवा रो लारो क्यूं॥
हांती पांती बांटो थे।
खोस्यां बैठ्या सारो क्यूं॥

7 टिप्‍पणियां:

  1. आप की कविताओ मै कभी कभी हरियाणवी झलकती है, मै हरियाणवी बोल तो लेता हुं लेकिन पढना कठिन है, बहुत सुंदर कविता धन्यवाद

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  2. kar deeni panchladyan ree ladaloom..
    ek syun badh'r ek..
    kai hindi ar kai rajasthani..
    bakhat ree abkhayan re saage saage aasavaad ro chanan bhi kharo deese..
    mokli badhayan sa...

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  3. ओम जी अर नीरज जी ओ काम बढिया करयो थे...

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  4. पंचलड़ी री घटा उमड़ पड़ी है अब....

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  5. Dekh Desh Ra Haal Dawwada ..!! PAdh KAr LAga Ki ek SAyar ne SAyad Sach Likha tha ..KI

    " Tujhe To Sirf Apne Gharne Ki Fiqr HAi "
    " Me SAyar Hun Mujhe Sare JAmane Ki Fiqr HAi "

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  6. रजधानी मेँ गोधा घुसग्या।
    काढण चालां चाल डावड़ा॥
    नेताओं पर इससे अच्छी टिप्पणी नहीं हो सकती। आपकी पंचलड़ी की पांचों लड़ियां बेहत सटीक और सुंदर हैं। आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा।

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