रविवार, जनवरी 29, 2012

दो हिन्दी कविताएं

{} कौन है {}




आंख झुकी


थकी सी
मौन है


देख दिल


पलकों में


कौन है !
 
[0] कहां हैं हमारे देव [0]




बुद्धि झोंक मेहनत


अनेक दंद-फंद


तीन-पांच के बाद भी


जो देव नहीं तूठे


उन्हें रिझाने चला


शहर क बड़े पंडाल में


अखंड कीर्तन


बुलाए गए


नामी भजनी


तबलची-झांझरिए


नगाड़ची-खड़ताली


भोग के निमित


पकाए गए


रसीले पकवान !






रात भर


हुआ कीर्तन


गाए गए


भजन पर भजन


लगे परोसे


चले दांत


भरी आंतें


ठोस पेटों के लिए


देवों को मिले


छप्पन भोग


खुशी-खुशी


सब अघाए


थके खा-खा


सुन सुन


धाए घर !






रात ढली


हुई भोर


छाया सन्नाटा


घर-आंगन-पंडाल मेँ


मांजते रहे बर्तन


करते रहे सफाई


सब कुछ करीने से


जुटाने-सजाने में


जुटे मजदूर


जिन्होने कीर्तन में


उद्घाटन से


समापन तक


न कुछ गाया


न कुछ खाया


रात भर नहीं किया


देव कीर्तन


अब कर रहे हैं


कीर्तन उनके हाड़ !






एक दूसरे से


मजदूरों ने पूछा


देव कब खुश हुए


किसे क्या दे गए


हमें भी दिया होगा


कुछ न कुछ


आयोजकों को दे कर


मनवांछित सब कुछ


या देव थे


उनके अपने


फिर कहां हैं हमारे देव ?

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