रविवार, जनवरी 29, 2012

प्रीत : दो चित्र

(::) रेत की पीर (::)



[1]

बहुत रोती होगी


रात के सन्नातटे में


बुक्काफाड़


तभी तो


हो लेती है


भोर में


शीतल


शांत


धीर


रेत की


अनकथ पीर !






[2]


हवा के संग


छोड़ यायावरी


दुबक गई है


प्रेत सरीखी


शीत से


भयभीत रेत


लिपट धरा से


पाने


अंतस बसी


स्नेहिल तपिश

1 टिप्पणी:

  1. "लिपट धरा से
    पाने
    अंतस बसी
    स्नेहिल तपिश"
    वाह ! कितने सम्मोहक शब्दचित्र हैं ! अद्भुत !

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