रविवार, जनवरी 29, 2012

एक हिन्दी कविता

{{}} काफ़िर शरद में {{}}




आया करो


मन मरुस्थल पर


काफ़िर शरद मेँ


मावठ की तरह


झूम कर !






छोड़ शिखर


जिद्द का


नीचे मी


उतरा करो


आया करो चाहे


पर्वतो पर उन्मुक्त


घूम कर !






हम हैं


ख़ला से उतरी


किरण सूरज की


होंगी खुश


पत्तियों पर


बूंद शबनमी


चूम कर !

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