रविवार, जनवरी 29, 2012

एक हिन्दी कविता

{()} मावठ की बारिश {()}




आज फिर हुई


मावठ की बारिश


जम कर बरसा पानी


टूटी टापरी में


नत्थू बेचारा


काट रहा था दिन


अब काट रहा है


चिंताओं की फसल


जो उग आई है


उसके खुले आंगन !






डांफर-ठिठुरुन में


धूजते बच्चे


मांगते स्वेटर


बूढ़ी अम्मा की चाहत


एक और कम्बल


छत पर


झाड़-फूस-खपरेल


खुद के तन का भाड़ा


घर से जो न निकला


कैसे निकलेगा जाड़ा


आज जुटेगा सब कैसे ;


चिंताओं में


लग गए दूभरिये !






कोठियों में


तले जा रहे


पकोड़ों की गंध


करे बच्चों में


घर का मोहभंग


तार तार होती ममता


थामे कैसे ।






थमेगी जो बारिश


थमेगी मजदूरी


रोएगा खेत


बिलखेगी रेत


जन्मेगी मजबूरी


स्वागत है बारिश


टापरी टाळ


अनचाहे आंसू सी


बरसती जा


मावठ की बारिश !

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