रविवार, जनवरी 29, 2012

एक हिन्दी कविता

[<>] नया साल [<>]




हर साल की तरह


इस बार फिर
आ रहा है


नया साल


ले कर नए सपने


आगत के स्वागत में


इस बार फिर


भूल जाएंगे हम


विगत के सपने


जो बोए थे हम ने


खुद अपने हाथों


समय के खेत में !






कुछ ही दिन बाद


अपने ही हाथों


फाड़ देंगें हम


प्राकृतिक दृश्यों वाला


वह मोहक कैलेण्डर


जो टांगा था हम ने


खुद अपने हाथों


पहले ही दिन


ड्राइंगरूम की दीवार पर


पिछले नए साल !






नए साल में


अम्मा हो जाएगी


एक साल और बूढ़ी


गुड़िया कद के साथ बढ़


हो जाएगी एक साल बड़ी


घर में एक नया डर


जन्म लेगा नए साल !






नन्हें नाती के


निकल आएंगे दांत


छुटके के उग आएगी


अक्ल दाड़


हमारे कितने गिरेंगे


गिनेंगे हम नए साल !






बाजार तो बाजार है


ठोक बजा कर बढ़ेगा


वेतन जोर शोर से


खर्च बढ़ेगा मगर चुपचाप


सैंसैक्स चढ़ेगा


गिरेगी मगर मानवता


नेता नहीं बदलेंगे


किसी हाल नए साल !






नया साल मुबारक


कहेंगे हम दौड़ दौड़


अपने इष्ट मित्रों को


संगी-साथियों को


मगर भूल जाएंगे खुद


हम जिएंगे अब


एक साल कम


नहीं रहेगा मगर मलाल


नए साल


जो आता रहेगा हर साल !

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