[<*>] सरदी के दोहे [<*>]
हाड़ काम्पते देह में,ठंड ठोकती ताल ।
भीतर बैठी शान से,नहीं बचेगी खाल ।1।
धुंध फड़कती छा गई, हवा बिगाड़े तान ।
होंठों पपड़ी आ गई,ठंडे होते कान ।2।
कपड़े लादे देह पर , हाथ में चुस्की चाय ।
भाप निकलती कंठ से,काया ठरती जाय ।3।
मीठी मीठी रेवड़ी, पापड़ी लिज्जतदार ।
गरम खाओ पकोड़ियां, सरदी सदाबहार ।4।
औढ़ रज़ाई दुबक लो, ढक लो सारे अंग ।
मात खाएगी ठंड तो ,तूम जीतोगे जंग ।5।
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