'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 01, 2012
अविचल पहाड़
*अविचल पहाड़*
खड़ा था पहाड़
अटल-अविचल
नभ को नापता
सूरज को तापता
आंधियों ने
वो अविचल पहाड़
हिला दिया
काट-तोड़-फोड़
हवाओं ने वो पहाड़
मिट्टी में मिला दिया !
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