सोमवार, अप्रैल 16, 2012

एक हिन्दी कविता

आओ आज हस लें
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खुदगर्जी के लिए
दौड़ते-दौड़ते
शायद अब हम
थक गए हैं
इस भागदौड़ के बीच
आओ आज
थोड़ा रुक जाएं
बैठें बतियाएं
छोड़ कर खुदगर्जियां
ठहाका लगा कर न सही
फुसफुसा कर ही हंस लें !

हसने के लिए
न सही सांझे कारण
हम तो हैं
हस लेंगे
एक दूसरे की
निर्गुट लाचारी पर ।

आटे की बनती हैं
सभी रोटियां
ढाबै और पंचतारा की
रोटियों का अंतर
न समझ आने पर
ओबामा और ओसामा में
ढूंढ़ें अंतर
न समझ आने पर
जम कर हस लें !

मेहनतकशी के बाद भी
कैसे हो गई सृजित
दाता और पाता सी
अमिट संज्ञाएं
इनके लिए
अपार अलंकार
असीमित विशेषण
कौन लाया ढो कर
इस पर थोड़ा रोएं
झल्लाएं
जाड़ पीस कर
मुठ्ठियां तानें
फिर भी अगर
दिखे लाचारी
तो हस लें !

हमें
खुद पर
क्यों नहीं आती
खुल कर हसी
आओ आज
इस पर ही
जम कर हस लें !

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