कितना प्यारे थे
बचपन के दिन
आज भी
याद आती हैं
उन दिनों की ।
उन दिनों
अपने ही हाथों
जो टूट जाता
खिलोना अपना
खूब रोते थे
इस पर मगर
कितना मिलता था
माँ का प्यार
पिता का दुलार ।
तब
खरीदते नहीं थे
कोई भी चीज
किसी बाज़ार से
हर मनचाही
पैसों से नहीं
हठ से मिलती थी !
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