'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
बुधवार, अक्तूबर 24, 2012
राजस्थानी कविता का अनुवाद
* प्रीत *
न तुम ने की
न मैँने की
फिर भी
हुई प्रीत!
प्रीत न जन्मी
न पली
वह तो थी
शाश्वत
हम तुम
महज माध्यम बने
जिन मेँ
उतरी प्रीत !
1 टिप्पणी:
Bhagirath Kankani
शुक्रवार, दिसंबर 14, 2012 8:21:00 am
mere blog "santam sukhaya" ko padh kar apane vichar likhe.
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