रविवार, जून 02, 2013

*और शब्दों के लिए*

छत पर 
बीड़ी पीते हुए
मेरे मित्र ने 
खाट पर लेटे
आसमान को घूरते
मुझ से कहा
अब सो भी जाओ
बहुत रात हो गई
मैंने कहा
तुम मेरे सोने का
इतना इंतजार
क्यों कर रहे हो
किस फिराक में हो !

उस दिन के बाद
मेरा मित्र
बहुत गुमसुम है
मानो उसके पास
कुल जमा
उतने ही शब्द थे
इधर मैं
आज भी
जाग रहा हूं
कुछ और शब्दों के लिए !

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