गुरुवार, अप्रैल 10, 2014

सपने मत देखना बेटी

अपनी बच्ची को
गोद में बैठा कर
दुलारती-पुचकारती 
माँ कहती है
सुनो बेटी !
मेरे आंगन में कभी
सपने मत देखना
अभी तुम खेलो
जम कर खाओ
खुल कर हंसो
उन्मुक्त चहको !

मेरे आंगन में देखे
कुछ सपने
यहीं छूट जाएंगे
और कुछ सपने
तुम्हारे आंगन में
जा कर टूट जाएंगे
जैसे टूट गए
या माँ के घर
छूट गए मेरे सपने !

मेरी मां
बहुत कहती थी
लड़कियां कभी भी
खुद सपने नहीं देखती
जिस के देखती हैं सपनें
उसी की हकीक़त बनती हैं
आज जो न समझी तो
माँ बन कर समझोगी
तब वही सपने देखोगी
अपनी बेटी के लिए
जो मैं देख रही हूं आज
केवल तुम्हारे लिए !

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