शुक्रवार, अप्रैल 11, 2014

उसके सुख

धर्मपत्नी है मेरी
यह सुन कर
वह पा जाती है
असीम सुख
यह शब्द
देते हैं जैसे उसे ऊर्जा
दिन भर 
यंत्रवत चलने के लिए ।

मुझे केन्द्र में रख
करती रहती है
दिन भर
घर के सारे काम


असंख्य चिंताओं के बीच
उसे बड़ी लगती हैं
मेरी चिंताएं
अपनी बीमारी से
बहुत बड़ी लगती है
मेरी बीमारी ।

चिंताएं औढ़ कर
देर रात तक
जाग कर सोती है
देखती है रात भर
मेरे ही सपने
भोर में जागती है तो
मेरे लिए ही जागती है
इसी उपक्रम में
वह ढूंढ़ती रहती है
अपने लिए सुख
जो उसे मिलता नहीं
मेरे सुख से पहले ।

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