गुरुवार, अप्रैल 10, 2014

प्रेम की करवट

प्रेम था किसान को
अपने गाँव से
अपनी जमीन से
वह छोड़ न सका
अपना गाँव और जमीन !

प्रेम था माँ से
माँ को छोड़ कर
जा न सका बेटा !

प्रेम था बेटे से
बेटे को छोड़ कर
जा न सकी माँ !

प्रेम था लड़के को
मोहल्ले की लड़की से
लड़का ले भागा
उस लड़की को
लड़की भी चल पड़ी
इस प्रेम के लिए
छोड़ कर
शेष सारे प्रेम !

जुड़े रहने से
छोड़ जाने के बीच
करवट लेता प्रेम
बदल लेता है
कितने-कितने मायने
एक जगह से टूट कर
दूसरी जगह होता है
नए अर्थों में स्थापित
जबकि हर मुकाम
होता तो है प्रेम !

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