'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
गुरुवार, अप्रैल 24, 2014
हमारे बीच
निस्तब्धता थी
हमारे पासंग
ना मैंने
मुंह से कहा
ना तुम ने
कानों से सुना
फिर भी
मैंने कहा
तुमने सुना
कोई और ही था
हमारे बीच माध्यम
जो जोड़े रहा हमें
आंख और दुख की तरह
बहता रहा वह
आंसू की तरह !
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