रविवार, अप्रैल 13, 2014

*आंखों में झील*

बोल कर हसना
बहुत आसान था
हस कर बोलना
बहुत कठिन
तुम मगर बेखौफ
हसते रहे
दोनों ही स्थितियों में
चेहरे पर भी कभी
उभरे ही नहीं
दर्द-ओ-सकून
भले ही नम थीं
तुम्हारी आंखें !

सच बताना
तुम्हारा अंतस भी
क्या बेखौफ है
इतना ही
जितना है बाहर
तो फिर
कहां से उतर आई
आंखों में झील
मचलती हुई ?

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